SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हवे इर्यापथिक कहे छे-दर, धातुनो अर्थ गति अने प्रेरणा छे. अने भावमां य प्रत्यय लागवाथी स्त्रीलिंगे इर्या शब्द थाय छे, आचा तेनोपंथ ते इर्या पंथ छे तेनो आश्रय थाय ते इर्यापथिक जाणवी. प्रश्न-इर्यानो पंथ क्यो छे ! के जेने आश्रयी पथिकी थाय छे ? उत्तर-आ व्युत्पत्ति ( उत्पन्न थवाने ) निमित्त छे कारण के ते उभा रहेनारने पण थाय छे. पण प्रवृत्ति निमित्त तो स्थि सूत्रम् ॥२७५॥ तिनो अभाव छे, अने ते उपशांत क्षीणमोह तथा सयोगीकेवळीने होय छे कारण के संयोगीकेवळीओ बेठेला होय तोपण निश्चयथी ||॥२७५॥ सूक्ष्म गोत्रना संचारवाला होय छे. __"केवली णं भंते ! अस्सिं समयंसि जेसु आगासपदेसेसु हत्थं वा पायं वा ओगाहित्ता णं पडिसाहरेजा, पभृ णं भंते ! केवलो तेसु चेवागासपदेसेसु पडिसाहरित्तए ? णो इणढे समढे, कहं ?, केवलिस्सणं चलाई सरीरोवगरणाई भवंति, चलोवगरणताए केवली णो सञ्चाएति तेसु चेवागा सपदेसेसु हत्थं वा पायं वा पडिसाहरित्तए' प्रश्न-हे भगवंत ? जे समयमा केवळज्ञानीए जे आकाश प्रदेशोमां हाथ अथवा पग पहेलां मुकीने पाछो ते जग्याए लइ शके? उत्तर-हे गौतम. ते समर्थ नथी. प्रश्न-शा माटे. ? उत्तर-केवळज्ञानीना पोतानाशरीरना भागो चलायमान होय छे, तेथी। * करीने जे भागमा प्रथम हाथ पग मुक्या होय त्यांथी पाछा लेतां सहेजसाज वांकुं थइ जाय. एटले थोडो फेर पडी जाय.. ___ आप्रमाणे वधारे सूक्ष्म शरीरना संचाररूप योगवडे जे कर्म बंधाय ते इर्यामां थएल होवाथी र्यापथिक छे.कारणके तेमां | LCCASSASSES CASISASHASA2 5 -6
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy