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________________ आचा० सुधीनुएवो अर्थ न लेवो) कारण के जिन कल्पी विगेरे बुनिने वीजा काळमां पण साकार प्रत्याख्याननो संभव नथी, तो प्रत्याख्यान जेवा अंतिम वखते साकारनो संभव क्याथी होय? कारण के इखर ते अमुक काळनं पच्चक्खाण रोगी श्रवक करे, के जो आ मसूत्रम् ॥७८१ रोगथी पांच दीवसमां मुकाइश, तो पछी भोजन करीश, ते शिवाय नहीं करुं विगेरे इत्वर पच्चक्खाण छे, पण इङ्गित मरण तो 5७८१॥ सधैर्य संहनन विगेरेना वळवाळो पोतानी मेळेज पासु फेरववानी विगेरे क्रिया करनारो आखी जींदगी सुधी चारे आहारनो त्याग करे छे. कयु छे केः पच्चक्खइ आहार, चउन्विहं णियमओ गुरुसमीवे; इजियदेसंमि तहा, चिट्ठपि हु नियमओ कुणइ ॥१॥ उवत्तइ परिअत्तइ, काइगमाईऽवि अप्पणा कुणइ सव्वमिह अप्पणच्चिअ ण, अन्नजोगेण घितिबलिओ ॥२॥ चारे प्रकारना आहारनुं गुरु पासे नियमथी प्रत्याख्यान करे,अने इङ्गित(मुकरर करेलां)भागमां चेष्टा पण नियमथी करे छे,[१] P पासुं बदले, बाजुए जाय अथवा ठल्लो मातरं करे, ते पण जाते करे, ते धैर्य तथा बळवाळो पोताना सिवाय वीजा पासे न करावे. म.--इजित मरण के छ ? अने कोण करे ? ते कहे छे. संत पुरुषोनुं हित करे तेथी ते इंगित मरण सत्य छे. अने सुगति दिमागे लइ जवामां ते अविसंवादपणे होवाथी तथा सर्वाना उपदेशथी ते इंगित मरण सत्य तथ्य छे. तथा पोते पण सत्य बोलनार होवाथी सत्यवादी छे, कारण के आखी जोंदगी सुधी यथोक्त अनुष्ठान करवानी प्रतिज्ञा लीधेली ते भार उपाडवा समर्थ होवाथी । B अने तेमज पाळवाथी सत्यवादी छे, तथा 'ओज' पोते रागद्वेष रहित छे. तथा संसार सागरने तर्यो छे, अने भूतकाळ माफक भविष्यमां पण तरवा माटे तेवो उपचार करवाथी अवतीर्ण छे, तथा जेणे राग विगेरेनी विकथा कोइ पण रीते न करवानुं नक्की
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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