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________________ आचा० सुत्रम् ७७५॥ (णं वाक्यनी शोभा माटे छे) जे साधुने आवो विचार थाय के "हुँ एकलो छु, संसारमा भ्रमण करतां परमार्थ दृष्टिए जोतां मने उपकार करनार बीजो कोइ नथी, अने हुं पण वीजा कोइना दुःखने दूर करवामां सहायक नथी, कारण के पोताना करेला कर्मनुं फळ भोगववामां सर्व जीवोने इश्वर समर्थ] पणुं छे" आ प्रमाणे आ साधु पोताना आत्माने अन्तरदृष्टिए सम्यग् रीते एकलो जाणे, अने आ आत्माने नरक विगेरेनां दुःखोथी बचावका शरण आपवा योग्य वीजो नथी, एवं मानतो होय ते पोताने जे जे रोग विगेरे दुःख देनारां कारणो आवे, त्यारे वीजाना शरणनी उपेक्षा करतो में कयु छे माटे मारेज भोगवq" आवो निश्चळ | विचार करीने सम्यग् रीते भोगवे छे. म०-ते केवी रीते एम समताथी सहन करे ? उ०-लापविय विगेरे चोथा उद्देशा २१५ मु०मां बताव्यु ते “ समत्वपणुं जाणवू" त्यांसुधी जाणवू, के आ साधुने कर्मनी लघुता थवाथी आ लोक परलोक बन्नेमां हित मुख निश्रेयस माटे थाय छे अने परंपराए मोक्ष फळ आपनार छे-तेथी तेणे एकत्वभावना भाववी आ अध्ययनना बीजा उद्देशामां उद्गम उत्पादन एषणा बतावी ते आ प्रमाणे "आउसंतो समणा ! अहं खलु तव अट्टाए असणं वा ४" विगेरे सू० २०२मां बताव्यु ते प्रमाणे पांचमां उद्देशामा ग्रहण एषणा बतावी, "सीया य से एवं वयं तस्सवि परो अभिहडं असणं वा ४ आह९ दलएजा इत्यादि [सत्र २१६मां वचमां आ पाठ छे] आ सूत्रवडे ग्रास एपणा बतावी तेने हवे पछीना सूत्रमा विशेषथी बताववा सूत्र कहे छे. से भिक्खू वा भिक्खूणी वा असणं वा ४ आहारे माणे नो वामाओ हणुयाओ दाहिणं 355252ॐॐॐॐॐ
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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