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आचा०
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| पीडाएलो देखतो नथी, सांभळतो नथी, संघतो नथी, विगेरे जाणवुर तेमां आहार विना केवळीनुं पण शरीर ग्लान भाव पामे छे. तो ते सिवायना बीजा जे स्वभावथीज भंगुर शरीरवाळा छे तेनुं भुं कहेतुं ?
म० - केवळी विनाना साधुओ अकृतार्थ छे, अने क्षुधा वेदनीयनो सद्भाव छे, तेथी तेओ आहार करे छे अने दया विगेरे महात्रतो पाळे छे ए मानवुं ठीक छे पण, केवळी तो नियमथी मोक्षमां जनार छे. त्यारे शा माटे शरीरने धारे छे ? अने ते धारण करवा शुं काम खाय छे ?
उ०—तेने पण, चार अघाति कर्मनो सद्भाव छे. तेथी एकांतथी कृतार्थता नथी, अने तेनी खातर शरीर धारे छे ! अने आ| हार विना तेनुं धारण न थाय; तथा तेमने क्षुधावेदनीय कर्मनो सद्भाव छे माटे खाय छे. ते कहे छे:- वेदनीयना सद्भावथी तेना करेला ११ परिसहो पण, केवळी ने ओछा के वधा परिषदो उदयमां आवे छे तेथी केवळी पण खाय छे. ए सिद्ध थयुं; अने तेथीज आहार विना इन्द्रियोनी ग्लानता छे एम बतान्युं. आ प्रमाणे तत्त्वने जाणनारो परिसदथी पीडानो होय, छतां पण शुं करे ते कहे छे:भिक्खु कालन्ने बलन्ने मान्ने ख अपडिन्ने दुहओ छित्ता नियाई (सू० २०९) छते पण, दया (कृपा) पाळे ( धारण करे) पण परिषहथी लघुकर्मा होय ते. जेनावडे सम्यक् रीते नारकी विगेरे
ओए दयं दयइ, जे संनिहाणसत्थस्स खेयन्ने से विषयन्ने समयन्ने परिग्गहं अममायमाणे कालेणुट्टाइ ओज – ते एकलो रागद्वेष रहित बनीने भूख तरसनो परिषह आवे पीडातां दया छोडी न दे. प्र० – क्यो पुरुष दयाने पाळे छे ? उ०- जे
सूत्रम्
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