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________________ आचा० ॥७४३॥ SABHA गाममां पण थाय अने अरण्यमां पण थाय पण धर्मनु निमित्त के धर्मनो आधार गाम के अरण्य नथी, जेथी भगवाने रहेवासने || आश्रयी के बीजी रीतनो आश्रय लइने धर्म बताव्यो नथी, तेमनुं कहे, ए छे के प्रथम जीवादि तत्वनुं ज्ञान मेळवबुं अने सम्यग सूत्रम् अनुष्ठान करवां के सर्व जीवोने अभयदान मळे ते धर्म छे.] ते धर्मने तमे वरोबर जाणो एवं भगवान महावीरे का छे. प्र०-भग-18/॥७४३॥ वान केवा छे ? उ०-मनन ते बधा पदार्थोनं परिज्ञान छे तेज मति छे अने ते मतिवाळा (केवळज्ञानी) भगवाने का छे. प्र०-केवो धर्म कह्यो छे ? उ०-याम ते महावतो छे तेमांत्रण बताव्या छे. जीव हिंसा जुठ अने परिग्रह ते त्रणेनो त्याग ने याम छे. ते परिग्रहमा अदत्तादान अने मैथुन समाव्या छे माटे पांचने बदले त्रण संख्या कही छे. अथवा याम ते वय (उमर) नी अवस्था छे. जेमके आठ वरसथी त्रीस अने त्यारथी साठ सुधी बीजी अने त्यारपछी त्रीजी एमां दिक्षा लेवाने अयोग्य एवा तद्दन नाना आठ वरसनी अंदरना अने छेकज बुढानो समावेश न को. (जुदा काढ्या) अथवा जेनावढे संसार भ्रमण विगेरे दूर । थाय ते याम ते ज्ञानदर्शन चारित्र छे. एम यामनो त्रण प्रकारे त्रणनी संख्यानो अर्थ को. (एटले महाव्रत पाळवां त्रण अवस्थामां धर्म करवो. अने रत्नत्रय ज्ञान विगेरे प्राप्त करवां) जो आ प्रमाणे छे तो शुं करवं. ते त्रण अवस्थामां अथवा ज्ञान विगेरेमां आर्य देशमा उत्पन्न थयेला अथवा पाप धर्मो दूर । करनारा बोध पामेला चारित्र पाळवा तैयार थयेला साधुओ छे. तेओ केवा छे.? ते बतावे छे. जेओ क्रोध विगेरे दूर करीने शांत थयेला छे अने पाप कर्ममा जेओ वासना राखता नथी तेज उत्तम साधुओ (मोक्षना अधिका-18 रीओ) छे. प्र०-तेओ कइ जग्याए पाप कर्ममां वासना रहित छे.? ते बतावे छे.! SASREGAAAAAA
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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