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________________ सूत्रम् ॥७३८॥ छ विकल्पवालं जगत् केटलाक माने छे. आचा० 5. ईश्वरप्रेरित केचित् , केचिद् ब्रह्मकृतं जगत् । अव्यक्त प्रभवं सर्वे, विश्वमिच्छंति कापिलाः ॥ ३ ॥ . . है केटलाक इश्वरनी प्रेरणाथी थएलुं माने छे, केटलाक ब्रह्माए जगत् करेलुं माने छे, एने कपिल मतवाला अव्यक्तथी । ॥७३८॥ बधुं विश्व थएलुं माने छे. यादृच्छिक मिदं सर्व, केचिद् भूत विकारजं । केचिच्चानेकरूपं तु, बहुधा संप्रधाविताः ॥ ४ ॥ केटलाक यादृच्छिक (स्वभाविक) बधुं माने छे, केटलाक भूतोना विकारथी थएलुं माने छे, केटलाक मतवाळा अनेक रुपवाडं जगत् माने छे, आ प्रमाणे अनेक प्रकारे मतवादीओ पोताना विचार बताववा दोडेला छे. आ प्रमाणे जेमणे स्याद्वाद समुद्र अव-18 गाहन को नथी तेवा एकांश ग्रहण करी मतिना भेदवाळा बनेला परस्पर दोषित बनावे छे, तेज का छे: लोकक्रियाऽऽत्मतत्त्वे, विवदन्ते वादिनो विभिन्नार्थ । अविदित पूर्व येषां, स्याद्वाद विनिश्चितं तत्त्वं ॥१॥ लोक, क्रिया, आत्मा, तथा तत्त्व संबंधी जुदा जुदा विषयने बताववा तेज वादीओ झगडा करे छे के जेमणे स्याद्वादथी वि-६ दूशेष प्रकारे निश्चय कर्या विना तत्वानुं वर्णन करेलछे; पण जेमणे स्याद्वाद मतनो निश्चय कर्यो छे, तेओने अस्तित्व नास्तित्व विगेरे । 'अर्थनो नयना अभिप्राय प्रमाणे कथंचित् (कोइ अंशे) आश्रय करवाथी तेमने विवादनो अभावज छे, ग्रन्थ वधी जवाना भयथी अहीं बहु कहेवार्नु छे, छतां कहेता नथी, तथा तेनुं वर्णन सूत्रकृत विगेरे सूत्रमा विस्तारथी का छे. ते वधा परस्पर विवाद करता पोताना तत्वनो आग्रह करी तेनुं समर्थन करता पोते नाश पाम्या छे, अने बीजानो नाश करे R-CORRECRUPEECIRE RECIESAKASEACHESTERTAL
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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