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________________ सूत्रम् आचा० आठे कर्म प्रकृति बन्धाय छे. अचाट, ए आठे प्रकारना कर्मना आ ७२३॥ म छे. एनुं पुरुषना बधा अथामा माथी ! उ०-हे गौतम ! ज्ञानावरणीय कर्मना उदयथी दर्शनावरणीय कर्म बन्धाय छे, तेथी मिथ्यात्वनो उदय थाय छे अने तेथी आठे कर्म प्रकृति बन्धाय छे. अथवा स्नेह (घी तेल) यी चीकणा बनेला शरीरवाळाने जेम शरीरमां झीणी रेती चोंटे छे. तेवी रीते ॥७२३॥ रागद्वेषनी चीकणासथी जीवोने कर्म चोंटे छे, ए आठे प्रकारना कर्मना आसवना निरोधथी अथवा तप वडे अपूर्वकरण क्षपकश्रेणीना 18 अनुक्रमथी अथवा शैलेशी अवस्थामा जे कर्मनो वियोग थाय छे, तेज कर्मक्षय रुप मोक्ष छे. एनुं पुरुषना बधा अर्थोमा प्रधानपणुं | होवाथी प्रारंभेल तलवारनी धारा माफक महावतोना अनुष्ठाननु मुख्य फळ होवाथी तथा बीजा मतवाळानी सा तेनो भेद होवाथी जेवू मोक्षनु स्वरुप जिनेश्वरे साचुं बताव्यु छे. ते कहे छे. अथवा प्रथम कर्मना वियोगना उद्देश वडे मोक्षनुं स्वरुप बनाव्यु. हवे ! जीव वियोगना उद्देश वडे मोक्षन स्वरुप बतावे छे. जीवस्स अत्तजणिएहि चेव कम्मेहिं पुवबद्धस्स । सव्वविवेगो जो तेण तस्स अह इतिओ मुक्खो ॥२६२॥ . जीव असंख्यात प्रदेशवाळो छे. तेने पोतानी मेळे (पोतानुंज) अनंतुज्ञान स्वभावथीज छे, तेने पोतानो आत्मा जे मिथ्यात्व अविरति प्रमाद कपाय योगमा परिणत थवाथी जे कर्मों पोतानाथी बन्धाय छे, ते कर्मने पूर्व बांधेल होवाथी तेनो प्रवाह अनादि काळनी अपेक्षाथी चालु छे. ते कर्मनो सर्वथा अभाव रुप विवेक करवो, अर्थात् आत्माने नेनाथी निर्लेप करवो, तेज जीवने तेटलोज मोक्ष छे. पण बीजा निर्वाण प्रदीप (बुझाएला दीवा) माफक कल्पेलो मोक्ष नथी, भाव विमोक्ष कह्यो, अने जेने ते मोक्ष थाय छे, तेणे सर्वथा मोक्ष प्राप्त करवा अवश्ये भक्त परिक्षा विगेरे त्रण मरण (अणसण)मांथी काइपण स्वीकार जोइए. अने कार्यमां कारणनो उपचार करवाथी ते मरणज भावविमोक्ष छे. ते बतावे छे. सम REGA । अवश्ये भक्त परिक्षा माफक कल्पेलो मोक्ष नानाथी निर्लेप करयो, तबाह
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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