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________________ आचा० धर्म कहे; अथवा आत्मानी अशातना बे प्रकारे छे. द्रव्यथी तथा भावथी, द्रव्यथी जेम, आहार उपकरण विगेरे द्रव्यनी काल अति पातादि संबंधी आशातना (बाधा) न थायः तेम कहे. (लोकोने जमवानो वखत होय; तेटली मोडी वार सुधी कथा कहेतो, लो सूत्रम् ॥७१३४ कोने शाम ४ कोने शरमथी न उठतां जमतां अंतराय थाय; अथवा शिष्योने गोचरी लावतां वहें वतां मोडं थतां, पोताने तथा बाळदृद्ध तपस्वी 8/७१३॥ समांदाने काळ उल्लंघतां बाधा थाय) ते आहार विगेरे द्रव्यमी बाधायी पोताना शरीरने पण पीडा थाय; तेथी भाव मलिन थतां भावाशातना पण थाय, अथवा कहेतां गात्र भंग रुप भाव आशातना न थाय तेम कहे; तथा सांभळनारनी हीलना (निंदा) न करे;1 51 के, सांभळनारने क्रोध चडतां आहार उपकरण अथवा साधुना शरीरनी कोइ पण रीते पीडा करवामां तत्पर थाय तेम कथा न करे, एथीज सांभळनारनी आशातना वर्जीने धर्म कहे, अथवा अन्य प्राणी भूत जीव सत्वोने वाधा न करे, ते मुनि पोतानी मेळे पोतानो रक्षक होवाथी अनाशातक छे. तेम बीजा क्रोधी न बनाववाथी पोते वीजानी आशातना करतो नथी. तेम कोइ आशातना करे तो तेनी अनुमोदना न करतो (बीजा) मराता पाणीओ भूतो जीवो सत्वोने पोताना तरफथी के पारका तरफथी पीडा न थायः | तेवो धर्म कहे. जेमके कोइ लौकिक कुमावचनीक पासत्था विगेरेने दान आपवानी प्रशंसा करे, अथवा कुत्रा तळाव बनाववानी प्र-- IC शंसा करे तो पृथ्वीफाय विगेरेने दुःख थाय, तेनो दोष साधुने लागे, तथा ते दाननी मिंदा करे तो ते बीना जीवोने दान न हो ID मलवाथी साधुने अंतराय कर्म बन्धावानो विपाक भोगववो पडे. का छे केः जे उदाणं पसंसंति, वहमिच्छति पाणिणं । जे उणं पडिसेहिति, वित्तिच्छे करिति ते ॥१॥ जेओ साधु थइने असाधुना दाननी प्रशंसा करे छे. ते सावध होवाथी साधुओने प्राणीओना वधनो दोष लागे छे. अने ते
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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