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________________ आचा० ॥६९३॥ पमाडे छे. (उत्तम जातीनुं मोती जे श्रीमंतोनुं मन रीझावे; तेवा मोतीने न समजनार कुकडानुं बच्चु जुवारनो दाणो समजी लेवा जतां; कदर न थवाथी फेंकी दे छे. तेज प्रमाणे क्षुद्र साधु गंभीर सूत्रना परमार्थने न समजवाथी हांसीना वाक्य तरीके मानी ले छे.) विगेरे. अथवा बीजी प्रतिमा 'हेच्चा उवसमं अहगे पारुसियं समारूइंति' पाठ छे, तेनो अर्थ आ छे के—उपशम छोडीने बहु श्रुत वनेला केटलाक (वधा नहीं) कठोरताने स्वीकारे छे, तेथी, तेमने बोलावतो, अथवा पूछवा जतां कां तो, चुप रहे छे. अ थवा हुंकार शब्द बोलीने माथु विगेरे हलावीने जवाब आपे छे. मां रही आ वळी, केटलाक ब्रह्मचर्य जे संयम रूप छे, तेमां रहीने अथवा, आचारांगसूत्र भणीने तेनो अर्थ ब्रह्मचर्य चारांगना विषयने अनुसार अनुष्ठान करवा छतां पण तेनो तिरस्कार करीने तीर्थकरना उपदेश रुप आज्ञाने कंइक माने कंडक न माने; परंतु, सातागौरवनां बाहुल्यपणाथी तीर्थकरना वचनने बहु मान आपता नथी; पण शरीरनी बकुशपणाने अवलंबे छे. (शरीरनी शोभा करवामां वीतरागनी आज्ञा उलंवे छे.) अथवा, अपवादने आलंबीने वर्ततां उत्सर्ग मार्गनो उपदेश आपतां तेओ एकांत पकडे छे के, 'ते उत्सर्ग मार्ग जिनेश्वरनो कहेलो नथी.' हवे, समजवा माटे अपवाद बतावे छे. कुज्जा भिक्खू गिलाणस्स, अगिलाए समाहियं; निरोगी भिक्षु (साधु) मांदा साधुनी समाधि माटे योग्य रीठे वेयावच्च करे. जे कारणे (रोगे) साधु मांदो होय; ते रोग दूर करवा आधाकर्मी आहार विगेरे पण लावी आपे. सूत्रम् ॥ ६९३ ॥
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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