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________________ सूत्रम ॥६८२॥ 18 थती. तेज कर्जा छे के: "णिम्माणेइ परो चिय अप्पाण उण वेयणं सरीराणं । अप्पाणो चिअ हिअयस्स ण उण दुक्ख परो देइ ॥१॥ बोजो माणस आत्माने पीडा नथीज आपतो पण शरीरने दुःख आपे छे, पण आत्माना ह्रदयर्नु दुःख पोतार्नु मानेलं छे. पण ॥६८२॥ पारको ते दुःख आपतो नथी. शरीरनी पीडा तो थाय छेज ते वतावे छे. ज्यारे शरीर सुकाय अने पातळ थाय, त्यारे मांसने लोही सुकाय, तेवा उत्तम साधुने लुखो तथा अल्प आहार होवाथी पाये खलपणे परिणमे छे. पण रस पणे नहीं. कारणना अभावथीज थोडुज लोही अने तेज शरीरपणे होवाथी मांस पण थोडुज होय छे, तेज प्रमाणे मेद विगेरे पण ओछां होय छे. अथवा रुक्ष लुखं होय ते माये पातल (वायु करनार) होय छे. अने वायु प्रधान थवाथी मांस अने लोहीनुं प्रमाण ओछुज होय छे. तथा अचेलपणुं होवाथी शरीरने घासना कठोर फरस विगेरे थतां शरीरमां दुःख थवाथी पण मांस अने लोही ओछां थाय छे. संसारश्रेणी जे रागद्वेषरुप कषायनी संतति छे, तेने शांति विगेरे गुणो धारीने विश्रेणी [ नष्ट ] करीने तथा समत्व भावपणु जाणीने ते प्रमाणे वर्ते जेमके जिनकल्पी कोइ एक कल्प [वस्त्र धारी कोइ बे, अने कोइ त्रण पण धारण करे छे, अथवा स्थविर में कल्पी मुनि मास क्षपण होय, कोइ पंदर दिवसना उपवास करनारो होय, तथा कोइ विकृष्ट अने कोइ अविकृष्ट तप करनारो होय, अथवा कोइ क्रूरगडु जेवो रोजनो पण खानारो होय, तो ते बघाए तीर्थकरना वचन अनुसारे वर्ते छे, अने परस्पर निंदा करनारा न होवाथी समत्वदर्शी छे, कमु छे केः सलवालवल
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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