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________________ * ॥२६४ पाठ वडे आकारनो उकार आदेश थवाथी समादानने वदले समुदान शब्द थयो छे:) तेमा प्रयोग कर्मवडे एक रूप पणे ग्रहण कआचा० रेली कर्म वर्गणाओनी सम्यक् मूळ उत्तर प्रकृति स्थिति अनुभाव अने प्रदेश वंधवाळा भेदवडे आ उपसर्ग (जेनो अर्थ मर्यादा छे ते.) ॐ सूत्रम् वडे देश (थोडो) सर्व उपघाती रुप वडे तेज प्रमाणे स्पृष्ट निधत्त निकाचित एवी त्रण अवस्था वडे जे स्वीकार करखो तेज समदान ॥२६४॥ छे, अने ते कर्मनुं नाम समुदान कर्म छे. तेमां मूळ प्रकृतिनो बंध ज्ञानआवरणीय विगेरे आठ प्रकारे छे, अने उत्तर प्रकृतिनो बंध जुदो जुदो छे, ते बतावे छे... 18. ज्ञान आवरणीयना पांच भेद छे. मति श्रुत अवधि मनपर्याय तथा केवळ एम पांच भेदे ज्ञान छे. तेंर्नु आवरण करनार सर्व द घाती फक्त केवळज्ञान- छे. अने वाकीना चारनां आवरण देशघाति अथवा सर्वघाति छे. दर्शनावरणीय कर्म नव प्रकारे छे. तेमां पांच प्रकारनी निद्रा तथा चार प्रकारचें दर्शन. तेने आवरण करनार जाणवू. निद्रा ६चक छे. ते मेळवेला दर्शननी लब्धि तेना उपयोगने उपधात करनार छे, अने दर्शन चतुष्टय ते दर्शनलब्धिनी प्राप्तिनेज आवरण : हूँ करनार छे. अहींयां पण केवळ दर्शनआवरण सर्वघाति छे. वाकीना देशथी छे. * वेदनीयकर्म, साता अने असाता एम बे भेदे छे. मोहनीयकम, दर्शनचरित्र भेदथी चे प्रकारे छे. तेमां दर्शनमोहनीय मिथ्या त्वादि उदयमा आवतुं त्रण भेदे छे, अने बंधमां तो एक प्रकारे छे. *SASCARSAROGRECAREER CREE -GG
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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