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________________ RECE सूत्रम् प्रः-ते वस्त्र विगेरे आदान केवां होय; के ते दर करवां पडे? आचा० उ:-(अल्प -अर्थमां नकार छे. जेमके-आ साधु अज्ञान छे. एटले, अल्पज्ञानवाळो छे, ते प्रमाणे अर्थ लेता) साधु अचेल । एटले, अल्प वस्त्र राखनारो संयममा रहेलो छे, तेवा साधु (भिक्षु) ने आq विचार न कल्पे के, मारुं वस्त्र जीर्ण थइ गयुं छे..? ॥६७६॥ । हु अचेलक थइश. मने शरीरचं रक्षक वस्त्र नथी; तेथी, ठंड विगेरेथी मारुं रक्षण केम थशे? तेथी हुँ विना वस्त्रनो थयो छ. तेथी कोइ श्रावकने त्यां जइ वस्त्र याचीलावू; अथवा ते जीर्णवत्रने सांधवाने सोय-दोरो याचीश; अथवा ज्यारे सोय-दोरो मळशे; त्यारे, जीर्णवस्त्रना काणांने सांधीश; फाटेलांने सीवीश; अथवा टुकां वस्त्रने जोडी मोटुं बनावीश; अथवा, लांबानो टुकडो फाडी सरखं अथवा, नानु बनावीश. एम योग्य बनावीने हु पहेरीश; तथा, शरीर ढांकोश. विगेरे, आर्तध्यानथी हणायलो अंतःकरणनी वृत्ति धर्ममां एकचित्त राखनार आत्मार्थी साधुने वस्त्र जीर्ण थवा छतां, अथवा होय नहीं; तोपण भविष्य संबंधी (चिंता) न थाय. अथवा सूत्र जिनकल्पीओने आश्रयी कहेलं छे. एम व्याख्या करवी कारण के ते मुनिओ अचेल (वस्त्र रहित) होय छे. तथा तेमना हाथमांथी तेमनी तपोबळनी लब्धिने लोधे पाणीनु बिदु पण न गळतुं होवाथी तेओ पाणिपात्र कहेवाय छे, पाणि एटले, हाथ, अने हाथमाज भोजन लइने करे छे. तेमने पात्रां विगेरेनो सात प्रकारनो नियोग होतो नथी; [कारण के तेवो तेमनो अभिग्रह छ.] तथा, कल्पत्रय पण त्यागेल छे. फक्त, तेमने रजोहरण, तथा मुखवत्रिका (ओघो, अने मुहुपत्ति) मात्र होय छे तेवा अचेल जिन-कल्पीमुनिने उपर कहेल आध्यान वस्त्र फाटवा-सांधवा विगेरे संबंधी न होय. (कारण के, धर्मीवस्त्र OSHO
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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