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________________ आचा० ६५६॥ Da तीक्ष्णै रसिभिर्दिप्तैः कुन्तै विपमैः परश्वधै ; परशु त्रिशूलमुद्गरतामरे वासी मुदीभि ॥ २ ॥ वळी, देदीप्यमान तीक्ष्ण तलवारोथी तथा विषमभाला, परशुअध चक्रोवडे, तथा परशु त्रिशूळ मुद्गर, तोमरवासी मुपंढीथी दुःखदेछे. संभिन्नतालु शिरश्छिन्न भुजाश्छिन्न कर्णना सौष्ठाः भिन्नहृदयोदरान्त्रा भिन्नाक्षि पुटाः सुदुःखार्त्ता ॥ ३ ॥ एटले, ताळ - माथु जुदुं पाडे छे, तथा भुजा, कान, अने होठ छेदीनाखे; तथा छाती-पेट, आंतरडां भेदीनांखे; तथा आंखोना डोळा खेंची काढवाथी रांक नारकीना जीवो पीडायला छे. निपतन्त उत्पतन्तो विचेष्टमाना महीतले दीनाः नेक्षते त्रातारं नैरयिका कर्म्म पटलान्धाः ॥ ४ ॥ नीचे पडेला पाछा ऊछळता जुदी जुदी चेष्टा करता महीतळ (पृथ्वी) उपर दीन थइ रहेला कर्मना पडदाथी अंधा बनेला नारकीना जीवो कोइ रक्षकने जोइ शकता नथी. शार्दुल विक्रिडित, ॥५॥ छिन्द्यते कृपणाः कृतान्त, परशो स्वीक्षणे न धारासिना; क्रदन्तो विषवीचि (वच्छ ) भिः परिवृता संभक्षण व्यापृतैः ॥ पाटयन्ते क्रकचेन दारुवदसिन मच्छिन्न वाहुद्वयाः कुंभीषु त्रपुपान दग्धतनवों भूषासृ चान्तर्गताः जमराजा परशुनी नीक्ष्ण तलवार जेवी धारावडे ते रांकडा छेदाय छे, तथा विपना समूहथी भरेला . ( हडकायला कूतरा जेवा) करडवा माटे वींटायला पोकार करता रहे छे, तथा करवतीवडे जेम, लाकडं चीरे; तेम चीराय छे, तथा तलवारवडे सेना ने बाहु छेदी नाखे छे, तथा कुंभीमां राखीने गरम गरम तर पाय छे, तथा मूपमां (घालीने जेम सोनी सोनुं पीगळावे; तेम) घालीने सूत्रम , ॥६५६॥
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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