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________________ 18/न जणाय तो, उपमाद्वारवडे आदित्यनी गति माफक जणाय छे के ? उ०-नहीं ते कहे छे, सादृश वस्तुनी उपमा थाय छे के आचा० हैं तेनी माफक आ छे पण ते सिद्ध मुक्त आत्मानी तुलना के तेमना ज्ञान के सुखनी तुलना लोकनी वस्तुनी साथे थती न होवाथी द्रा अनुपम छे.प्र०-शा माटे ? उत्तर-ते मुक्त आत्मानी जे सत्ता छे ते रुप रहित छे. अने ते अरुपीपणुं उपर कहेल दीर्घ विगेरेनो सूत्रम १६४०॥ निषेध करवाथी बतायुज छे. P॥६४०॥ हूँ वळी तेने पद 'ते अवस्था कोइ पण जातनी न होवाथी अपद छे, तेनुं अभिधान पण नथी के जे पद वडे अर्थ बोलाय का-६ हरण के वाच्य पदार्थनो अभाव छे. कारण के जे कहेवाय छे, तेज शब्दरुप गंध रस फरस विगेरेमांथी कोइ पण एक विशेषणथी बोलाय छे. तेनो अभाव छे ते बतावे छे. अथवा दीर्घ विगेरे शब्दोथी रुप विगेरेनु विशेषथी निराकरण कयु हवे सामान्यथी पछीना & सूत्रमा निराकरण करे छे. P सेनसद्दे न रूवे गंधे न रसेन फासे, इच्चेव त्तिबेमि (सू० १७१) षष्ट उद्देशकः । लोकसाराध्ययनं समाप्तम् ५-६॥ ol ते मुक्त आत्माने शब्दरुप गन्ध रस के स्पर्श नथी आज भेदो मुख्यत्वे वस्तुना छे, अने तेना प्रतिषेधथी बीजो कंइ विशेष भेद देखातो नथी, के जेथी अमे बीजु बतावीए ! आ प्रमाणे मुधर्मास्वामी कई छे. सूत्रानुगम कह्यो, अने तेनी समाप्तिथी अपवहै गने पामेलो (मोक्ष विषय कहेवानो) उद्देशो पूरो थयो, ते मोक्षनी प्राप्तिमां तपनी वक्तव्यता थोडामां बताची पंचम अध्ययन पुरुं थयु टीकाना श्लोक १११५ थया: हालय 9000000000000000000000 50000000000000000000000 %
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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