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________________ सूत्रम् SASA करे छे, तेथी उंचे श्रोत ते वैमानिक देवीना अभिलाशनी इच्छा, अथवा वैमानिक देवना मुखनु निया' करवू, के, मने ते, मळो. आचा० अधो (नीचे) भवनपतिना देवोना सुखनो अभिलाप, अने तिर्यक्लोकमां व्यंतर तथा मनुष्य नथा तिर्यंचना विषयोनी इच्छा थाय छे, ॥६३५॥ | ते श्रोतो छे, अथवा प्रज्ञापकना आश्रयथी उंचे ते पहाडनां शिखरो तथा मोटा मेदान होय; अथवा मोटा धोध पडता होय. नीचे हूँ नारकी तथा नदीना किनारानी उंडी गुफाभोनां स्थान तथा तिर्यक्लोकमां आराम सभा विगेरे जीवोने उपभोगनां स्थानो छे, ते बनावटी के स्वभाविक बने छे अथवा कर्म परिणतिना कारणे मळेला छे, ए वधां (रमणिक अरमणिक) स्थानो कर्मना आस्रवद्वारो होवाथी श्रोतनी माफक श्रोतो छ, आ त्रणे प्रकारोबडे तथा बीजां पापोनां उपादानना हेतुवडे प्राणीओनी थती आसक्तिने अथवा कर्मना अनुसंगने जो, ते कर्मना अनुसंगना कारणथीज ए श्रोतो छे. एम कहे कहे छे, माटे तुं सदा जैनागम प्रमाणे उद्यम कर. आवदं तु पेहाए इत्थ विरमिज वेयवी, विणइत्तु सोयं निक्खम्म एसमहं अकम्मा जाणइ पासइ पडिलेहाए नावकंखइ इह आगई गई परिन्नाय (सू० १६९) राग द्वेष कपाय अने विषयरुप जे आवर्त छे, ते अथवा कर्म बंधनो जे भाव आवर्त छे, तेने जोइने तुं विषयरुप भाव आवतने वेद (आगम)ने जाणनारो बनीने तेनाथी विरम, अर्थात् आसूबद्वारनो अटकाव कर, बीजी प्रतिमां "विवेग किट्टइ वेदवी" पाठ छे. एटलेआसूबद्वारने अटकावी तेनाथी यता कर्म बन्धनो वेदविद् माणस अभाव करे ? आसवद्वारना निरोधथी शुं थाय ? ते कहे छे, आम्वद्वारने दुर करवा दीक्षा लइने प्रयास करे, तेज आ प्रत्यक्ष प्रयोजन छे. अने ते आपणी चालु वातमा मुख्य छे. तेथी EARCESS
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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