SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 371
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 15क्षणमा प्रवर्ते छे, क्षणनो अर्थ हिंसा छे, तेथी जेम ते हिंसामां वर्त्त छे, तेम जूठ विगेरेमां पण प्रवर्ने छे, पण रुप विषयोमा प्रधान होवाथी तथा ते रुपवाळ होवाथी (तुर्त तेमां मन दोडतुं होवाथी) लीधुं छे, अने आस्रव (पाप) द्वारोमा हिंसा मुख्य अने प्रथम आचा० होवाथी ते लीधेल छे, अर्थात् अज्ञानी माणस रुप विगेरे माटे धर्मथी भ्रष्ट थइने गर्भ विगेरेनां दुःख भोगवे छे. एम आ जिनेश्वरना ॥५८६॥ मार्गमां कहेल छे, पण जे डाह्या माणसे आ विषय रसने पाछ गर्भादि गमननो हेतु जाणीने पोते धर्मथी भ्रष्ट न थइने हिंसा विगेरे आस्रव द्वारथी दूर रहे छे, ते केवो थाय, ते कहे छे. ते एकलोज जीतेन्द्रिय मुनि त्रण जगतने माननारो वनीने सम्यग रीते तेणे मोक्ष मार्ग पग तळे ख़ुदी नांख्यो छे, एटले ज्ञान दर्शन चारित्रबडे मोक्ष मार्ग संमुख को छे. तथा चीजी प्रतिमां 'संविद्ध भये पाठ Bछे, एटले ते जीतेन्द्रिय मुनिए भय जाण्यो छे, एटले जे हिंसा विगेरे आस्रवद्वारथी दूर रहे ते मुनिज खुदेला मोक्ष मार्गवाळो छे. 18 वळी बीजी रीते मुनि होय ते कहे छे, जे विषय कपायर्थी पराभव पामेलो छे, हिंसा विगेरे कृत्यमां रक्त छे, तेवो गृहस्थ अथवाद IF पाखंडी जन समूह छे तेने रांधवा रंधाववामां अथवा औद्देशिक तथा सचित्त आहार विगेरेमां रक्त छे. तेवानी (दुर्दशा विचारी) | तेनी संगति न करतो, अने तेवा पाममां पोताना आत्माने न जोडतो, अशुभ व्यापार छोडीने, मोक्ष मार्ग जाणनारी मुनि बने छे,8 5. लोकने उलटा मार्गे चालेला जोइने पोते शुं करे? ते कहे छे. । पूर्व कहेला अशुभ हेतुओथी जे कर्म बांध्यु छे तेना उपादान कारणो संपूर्ण ज्ञ परिज्ञावडे समजीने प्रत्याख्यान परिज्ञावडे सर्वथा Bछोडे, केवीरीते छोडे ते कहे छे. 'स' ते कर्म छोडनारो काय वाचा अने मन वडे जीवोनी हिंसा न करे, न मरावे, मारताने भलो 31 न जाणे, वळी पापोना उपादानमा प्रवर्त्तता पोताना आत्माने रोके, अथवा सत्तर मकारना संयममा आत्माने जोडे, अथवा आ चार बनवल
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy