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________________ आदिअंत लेवाथी मध्यन अवश्य आवी जाय छे. 'किंच' वळी 'सदा' सर्वकाळ १८००० भेदवाळु शीलवत अथवा संयम पाळे अथवा शीळ चार प्रकारच् छे. महाव्रतने सारीरीते पाळवां, त्रण गुप्तिओ पाळवी. सूत्रम् . पांच इन्द्रियोनुं दमन करवू; कषायनो निग्रह करवो. आ प्रमाणे चार प्रकारने शीळ विचारीने मोक्षना अंगपणे पालन करजे; ८३ & पण एक नीमेष (आंख ने फरकवानो काळ) मात्र पण प्रमादिवश न थइश. प्रः-क्यो माणस शीळनो संभेक्षक थाय ? ते कहे छे: --॥५८३॥ जे शीळनां रक्षणचें फळ (मोक्षगमन) छे, तथा कुशील सेक्वानुं फळ नरकगमन विगेरे आगमथी जाणे छे, ते गीतार्थसाधु है | 'अकाम'-इच्छा मदन काम (संसारी वासना)रहित बने, तथा तेने झंझा (माया अथवा लोभ इच्छा) न होय, तेथी अझंझ कहेवाय, अने काम तथा झंझानो प्रतिषेध करवाथी मोहनीयना उदयनो प्रतिषेध कर्यो, अने तेना प्रतिषेधथी शीलवाळो बने, एनो भावार्थ आ छे, के धर्म सांभळीने अकाम (सुशील) थाय, अने अझंझ थवाथी अमायी थाय, आ बन्ने गुणथी उत्तर गुण लीधा, अने ते | उपलक्षणथी मूळगुण (महावत) पण लीधां, तेथी अहिंसक सत्यवादी पण थाय, विगेरे समजी लेवु. शंका-जीवथी शरीर जुदं छे, आवी भावना भावनार तथा पोतानुं बळ वीर्य गोपच्या विना धर्म करनार १८००० शीलींग धारण करनारने तथा उपदेशमां कद्देवा मुजब वर्तवा छतां पण मारो सर्वथा कर्ममल दूर नथी थयो, तेथी तमे तेनुं असाधारण IP कारण कहो ! के जेना बडे हुं शीघ्र संपूर्ण कर्ममल कलंकथी रहित थाउं, हुं आपना उपदेशथी सिंह साथे पण युद्ध करीश, कारण के कर्म क्षय करवा माटे हु तैयार थयो छ, तेथी कंइ पण मने अशक्य नथी तेनो उत्तर मूत्रकार आपे छे, इन्द्रिय तथा मनरूप औदारिक शरीरवडे तुं युद्ध कर, कारणके ते विषयमुखनो पिपासु वनील कल्या - *e
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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