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________________ आचा० CREE सूत्रम् ॥५७०॥ सब-ब-ब- ॥५७०॥ थाय तो अवश्ये कार्य भेद थाय छे, तेथी पूर्वे कहेलुं फरीयाद करवावीने कहे छे, 'पुढो' दुःखना उपादानना भेदथी माणीओनु दुखि पण जुहूँ जुदुं बताव्युं कारण के बधा प्राणीओने पोताना करेलां कर्म भोगववामां इश्वर (समर्थ)पणुं छे, पण वीजान करेलु पोते | न भोगवे आवं मानीने शुं करे ? ते कहे छे, से-ते अनारंभ जीवी साधु प्रत्येक प्राणीना सुख दुःखना अध्यवसायने जाणनोरो जुदा जुदा उपायो वडे पाणीओनी हिंसा न करतो तथा जुटुं न बोलतो, (संयम पाळे) तेम तुं पण जो (सूत्रमा प्राकृतना अथवा आर्ष वचनथी 'पश्य'नो लोप थयो छे. ए प्रमाणे पर स्वमां पण ज्यांपद न ली, होय त्यां लेवू) आवीरीते जीवहिंसा न करनारो वीजुं शुं करे ते कहे छे, पुट्ठो-ते पांच महाव्रतमां स्थिर रहीने जे प्रमाणे संयम पाळवानी प्रतिज्ञा लीधी छे. ते प्रमाणे पाळवामा उद्यम करे, अने परिसह उपसर्गो आवतां तेनाथी थता शीत उष्ण विगेरे स्पर्श अथवा दुःखना स्पर्श आवे तेने सहन करी आकुल न थाय तू पण संसार असार छे विगेरे जुदी जुदी भावनाओवडे (धर्ममां) प्रेरे, अने प्रेरणा ते सम्यक्प्रकारे सहे. पण ते दुःख पडवाथी आत्माने # दुःखी न मानवो. (व्याकुल न थर्बु) पण जे समभावे रही परीपहोने सहे, तेने शुं गुणो थाय, ते कहे छे: एस समिया परियाए वियाहिए, जे असत्ता पावेहिं कम्मेहिं उदाहु ते आयंका फुसंति, इति उदाह धीरे ते फासे पुट्ठो अहिया सइ, से पुविं पेयं पच्छा पेयं भेउरधम्मविद्धंसणंधम्ममधुवं __ अणिइयं असासयं चयावचइयं विपरिणामधम्मं, पासह एयं रूवसंधि (मू० १४७) पर्व कहेलो जे परीपहोनो प्रणोदक [सहेनारो सम्म अथवा शमिता शमना भाववालो पर्याय ते चारित्रने ग्रहण करीने सम्यक 5A5%SHADAILY SECGC
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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