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________________ RECA सूत्रम् 353 हिंसमाणे अणवयमाणे, पुट्ठो फासे विपणुन्नए (सू० १४६) आचा० आमनुष्य लोकमां जेओ केटलाक मनुष्यो आरंभ रहित जीवनारा छे, अहीं आरंभ एटले सावद्य अनुष्ठान अथवा प्रमादीपणुं छे को छे के ॥५६८॥ 18 आदाणे निक्खेवे, भासुस्सग्गे अ ठाणगमणाई । सबो पमत्तजोगो, समणस्सवि होइ आरंभो ॥१॥ ___ कोइ पण वस्तु लेवी के मुकवी, बोलवू. मल परठवो, स्थानमा रहेQ. अथवा जवु आवq, आ वधु कार्य साधु जो प्रमादथी करे, तो तेने आरंभ (नो दोष) लागे छे, पण तेथी उलटुं ते प्रमाद न करे, तो अनारंभी कहेवाय छे, तेवु निरारंभ जीवन गुजारे छे, तेवा 3 साधुओ समस्त आरंभथी निवृत्त थएला छे, अने जे गृहस्थीओ पुत्रकलत्र के पोताना शरीर विगेरेना रक्षण माटे आरंभ करे छ,5 तेमना उपर जीवन गुजारे छे, तेनो भावार्थ आ छे, के सावध अनुष्ठान करनार गृहस्थो छे, तेमना आश्रये पोताना देहनो निर्वाह करवावाळा अनारंभ जीवनवाळा ते साधुओ होय छे, जेम कादवना आधारे रहेल छतां कमळ निर्लेप होय छे, तेम तेओ निर्लेप छे, | जो एम छे, तो शुं समजवू. ते कहे छे, आ सावध आरंभवाळा कर्तव्यमां संकुचित गात्रवाळो बने. अथवा अहों जिनेश्वर कहेला 1 धर्ममा रही पापारंभथी निवृत्त थाय. प्रश्न-ते शुं करे? उ०-ते सावध अनुष्ठानथी आवेल (थता) कर्मने क्षय करतो मुनि भावने भजे ६ * प्रश्न-शुं आलंबन लइने उपरत थाय ? उ०-'अयंसंधी' विगेरे (अविवक्षित कर्म बताच्या विनानो धातु होय ते पण अकर्मक धातु 1 थाय छे. जेमके, जो ? मृग दोडे छे ! एम अहीं पण "अद्राक्षीत्” क्रिया छतां पण असंधि एम प्रथमा विभक्ति करी छे.) आ प्रत्यक्ष 12 नजरे देखातो आर्यक्षेत्र मुकुलमा जन्म इन्द्रियोनी पूरी शक्तिधर्मनी श्रद्धा तथा वैराग्य लक्षणवाळो अवसर मळ्यो छे, अथवा मिथ्यात्वनो -Aca-G-COCCUESDAE
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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