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________________ १ . C FACCE- सूत्रम् ॥५५०।। 18 छे अथवा पांच कपर्दिका (वाळकोनी रनवानी कोडीओ) वाळो छे. स्थूळमां एरंडो सार छे (अहीं सार शब्द प्रकर्षवाची छे.) आचा० स्थळ मध्ये एरंडो अथवा भीडो प्रकर्प थयेलो छे, गुरुपणामां वज्र भारे छे. मध्यमां खेरनुं झाड छे, देशमां आंवो अथवा वेणुं छे. प्रधानमां ज्यां जे प्रधान भाव अनुभवे ते सचित्त अथवा अचित्त के मिश्रज होय ते, तथा सचित्तमां बे पगवाळो अपद छे, तेमां ॥५५० पगमां तीर्थकर छे. चो पगमा सिंह छे. अपद (झाडो) मां कल्पक्ष छे. अचित्तमां वैडूर्य मणिरत्न छे मिश्रमां तीर्थंकरज ज्यारे विभूपित होय छे, शरीरोमां मुक्ति जबाने योग्य तथा विशिष्ट रुपनी प्राप्ति (तीर्थकर चक्रवर्तीने आश्रयी) होयाथी औदारिक प्रधान छे, गाथामां आदि शब्द शरीर साथे लेवाथी स्वामिल करण अधिकरणमा सारता योजवी, जेमके स्वामीपणामां गोरसतुं सारभूत घी छे, करणपणामां मणीरत्ननी सारतावाळा मुकुट वडे राजा शोभे छे, अधिकरणमां दहीमां घी, पाणीमां कमळ उगेलु शोभे छे विगेरे छे. हवे भावसार बतावे छे. भावे फलसाहणया फलओ सिद्धी सहूत्तम वरिहा। साहणय नाण दसणसंजमतवसा तहिं पगयं ॥२४१॥ भाव विपयमा सार विचारतां फळनुं साधन तेज सार छे. जे, मतलब माटे क्रिया करीए ते प्राप्त थाय. (जेमके-विद्यार्थी वरस सुधी भणे अने पास थाय; त्यारे भावसार छे.) जोके, आ फळ प्राप्ति प्रधान छतां ते मळे. पछी तेनो अंत पण आवीजाय | अने अनिश्चित पण छे. तेथी ते, अनेकांत अनात्यंतिक छे, ते कारणथी परमार्थथी जोतां निःसार छे. पण तेथी उलटुं एटले, सिद्धि1 पदज मेळवq सार छे. ते केवु छ ? उ:-ते उत्तम सुखवडे श्रेष्ट छे. कारणके, ते एकांत सुखवाळी, अत्यंत सुख आपनारी सिद्ध A RALLERS
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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