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________________ आचा० ॥५४७॥ वस्तु उपर मोह न रहेवाथी ममता छुटीजवाथी तेवा पश्यक ( केवळ ज्ञानी) ने कर्मजनित उपाधि भविष्यमां मळवानी नथी; ते प्रमाणे हुं पण कहुं हुं पण आ हुं मारी बुद्धिथी कहेतो नथी, सूत्रानुगम कह्यो. चोथो उद्देशो समाप्त थयो, नय विचार तेमांज थोडो | बतावी दीधो छे. चोथुं सम्यक्त्व नामनुं अध्ययन समाप्त थयुं. ('टीकाना स्लोक ६२० थया . ) 'लोकसार' नामनु पांचमुं अध्ययन. चो अध्ययन का पछी हवे पांच अध्ययन कहे छे. तेनो आ प्रमाणे संबंध छे. गया अध्ययनमां सम्यक्त्वनुं स्वरुप चताच्युं; अने तेनी अंदर ज्ञान रहेलुं छे, ए सम्यक्त्व तथा ज्ञाननुं फळ चारित्र छे, अने चारित्रज मोक्षनुं अंग प्रधानपणे छे, तेथी ते लोकमां साररुप छे. ते चारित्रनुं प्रतिपादन करवा माटे आ अध्ययन छे. आवा संबंधथी आवेला आ लोकसार अध्ययनना उपक्रम विगेरे चार अनुयोगद्वार थाय छे ते प्रथम उपक्रम द्वारमां अर्थाधिकार वे प्रकारे छे. अध्ययननो विषय पहेला अध्ययनमां को छे, अने उद्देशानो नियुक्तिकार गाथाओ व कहे छे. हिंसगविसयारंभग, एग चरुति न मुणी पढमगंमि विरओ मुणित्ति बिइए, अविरयवाइ परिग्गहिओ ॥ २३६ ॥ तइए एसो अपरिग्गहो, य निविन्नकामभोगोय । अवत्तस्सेगचरस्स, पच्चवाया चउत्थमि ॥ २३७ ॥ हरओम य तव संयमगुत्ती निस्संगया य पंचमए । उम्मग्गवजणा छट्टगंमि, तह रागदोसेय ॥ २३८ ॥ " सूत्रम् ॥५४७॥
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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