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________________ महा मोहथी मलिन अंतःकरणवाळो गृद्ध बने. प्रः-पठी ते केवो थाय ? उ.-अवोच्छिन्न विगेरे-एक सरखां सेंकडो जन्ममरण आ-16 आचा० पनार एवु आठ मकारना कर्मरुप बंधन तेने मळे छे बळी 'अणमि.' जेणे संसारना संयोगरुप धन धान्य सोनू, पुत्र स्त्री, विगेरेनो. मोह अथवा असंयमनो संयोग छोड्यो नथी; ते 'अनभिकांत संयोगी' छे, तेवा कुसाधुने इन्द्रियोने अनुकुळ विषयलालसाना अंधारामा | सूत्रम् ॥५४३॥ अथवा मोहरुप अंधकारमा प्रवर्तेलानुं पोतानुं खरं हित अथवा मोक्षउपायो तेणे न जाणवाथी तीर्थकरनी आज्ञा (उपदेशनो) लाभ n५४३॥ तेने यवानो नथी एबुं हुं कई छ अथवा तेने आज्ञा एटले सम्यक्त्वनो लाभ थवानो नथी. (भविष्यमां) पण धर्म मळवो दुर्लभ छे. कारण के, सूत्रमा नास्तिक शब्द छे ते अव्यय प्रणे काळ आश्रयी छे. जस्स नत्थि पुरा पच्छा मज्झे तस्स कुओ सिया? से हु पन्नाणमंते बुझे आरंभोवरए, संममेयंति पासह, जेण बंधं वहं घोरं परियावं च दारुणं पलिछिंदिय बाहिरगं च सोयं, निकंमदंसी इह मच्चिएहिं, कम्माणं सफलं दह्ण तओ निजाइ वेयवी (सू० १३९) जे कोइपण बाळमूर्ख साघु कर्मादान स्रोतमां गृद्ध थयेल छे तथा एकसरखां जन्ममरण बांध्या छे. तथा संसारमोह छोड्यो नथी, अज्ञानअंधकारमा भूल्यो छे, तेने पूर्वजन्ममां धर्मप्राप्ति नहोती; भविष्यमां पण थवानी नथी तेने मध्यजन्ममां क्याथी थवा४नी छे? अर्थात् जेणे सम्यक्त्व पूर्व प्राप्त करेल हशे; तेनेज वर्तमानमां मळे छे. कारण के जेणे सम्यक्त्व पूर्वे मेळवी तेनो स्वाद लीधो तेने पाछो मिथ्यात्वनो उदय थतां अपार्ध पुद्गळ परावर्तनना काळे पण थशे; पण सम्यक्त्व वमेलाने फरी सम्यच्चनो असं -% CE अवॐ
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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