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________________ जाना सूत्रम् ॥५१६॥ ॥५१६॥ 04-10-1450 दुर्गुणोथी अशुभ नाम बन्धाय छे. जाति, कुळ वळरुप तप, विद्या लाभ जैश्वर्यना मद न करवाथी ऊंचगोत्र वन्धाय छे, अने जाति | विगेरेनो मद करवाथी, तथा पारकानी निंदा करवाथी नीचगोत्र बन्धाय छे, दान, लाभ भोग-उपभोग, अने वीर्य ए पांचना अंतराय करवाथी अंतरायकर्म बन्धाय छे. आज उपर कहेला आस्रवो छे. हवे परित्रवोढुं स्वरूप वतावे छे: - अनशन विगेरे वाह्य अने अभ्यंतर-तप ते कर्मनी निर्जरा करनार परिस्रव छे, आ प्रमाणे आस्रव करनार अने निर्जरा कर- नार भेदोसहित जीवो वताच्या छे, ते वधा जीव विगेरे सात पदार्थो मोक्ष सुधी छे ते जाणवा. आ पदार्थोने तीर्थकर तथा गणधर भगवन्तोए लोकोत्तर ज्ञानवढे जाणीने जुदा जुदा बतावेल छे, अने तेज प्रमाणे तेमनी आज्ञामां वर्तनार चीजो कोइपण साधु चौद पूर्व विगेरेनुं ज्ञान धरावनार जीवोनां हितने माटे वीजाओने पण उपदेश आपे छे, ते वतावे छे: आघाइ नाणी इह माणवाणं संसारपडिवण्णाणं संबुज्झमाणाणं विन्नाणपत्ताणं, अट्टावि संता अदुवा पमत्ता अहा सच्चमिणं तिबेमि, नाणागमो मच्चुमुहस्स अस्थि इच्छा पणीय। वंकानिकेया कालगहिया निचयनिविद्या पुढो पुढो जाई पकप्पयंति (सू० १३१) वधा पदार्थोंने बतावनार ज्ञान छे. ते ज्ञान ने होय; ते ज्ञानी कहेवाय, ते ज्ञानी प्रवचनमां मनुष्याने उपदेश करे छे. मनुष्य लेवानु कारण ए छे के, पचेन्द्रिय सांभळे समजे; तो पण, तेओ संपूर्ण चारित्र तथा संवर लइ शके नहि अने देवता विगेरे सांभळे, पण आदरी शके नहि वळी, केवळीने उपदेशनी जरुर नथी; माटे संसारमा रहेलां घातीकर्मवाळां जीवोने आ उपदेश अपाय छे. बदनाव-लालन 4%86- -७
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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