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________________ आचा० सूत्रम् ॥५५॥ ॥५१४॥ जनरल कृत्य करवा छतां तेवा संजोगोना अभावेमन परिणाम वदलातां बंधरुपे थाय छे, तेवीरीते कोइने व्रत लीधाथी अनास्रव थतां निर्जरा थवी जोइए, छनां कारण वदलातां ते व्रत बंधनरुपे थाय, अने अपरिसूव ते बंधनु कारण छतां संजोगो वदलातां बधरुपे न है थाय, माटे एकांत पकडवू. पण बुद्धि पूर्वक संजोगो तथा मनना परिणाम विचारी अनुमान करवू, के वोलचु.) अथवा बीजी रीते बतावे छे. जे आसूव करे-ते आस्रबो (पच विगेरेमा 'अ' लागे छे, तेज प्रमाणे जे परिस्रव करे ते परिस्रवो (निर्जरक) छे. एनी। चोभंगी थाय छे, तेमां मिथ्यास अविरति प्रमाद कपाय योगोबडे जेओ कर्मना अस्रबो (बंधको) छे, तेओज बीजाओना परिस्रवो 2 (निर्जरा करनारा) छे आ प्रथम भांगामां पडेला बधा संसारी जीवो चार गतिमा भ्रमण करनारा छे. ते दरेकने प्रत्येक क्षणे | आसव तथा निर्जरा छे पण जेओ आसव करे तो परिसव न करे, आ चीजो भांगो शून्य छे कारणके, बंधनी जोडे निर्जरा (थोडेघणे अंशे) हमेशां चालुज छे. ए प्रमाणे जे अनासबवाळा छे, तेओ परिसववाला छे, एटले, तेओ अयोगी केवळी १४ गुणस्थानमा रहेला त्रीजा भागमां छे, अने चोथा भागमां सिद्ध भगवंतो छे, तेओमां अनावपणुं छे, तेम अपरिसरपणुं पण छे, एमां पहेलो अने छेल्लो भांगो सूत्रमा लीधेल छे. अने पहेलो छेल्लो लेवाथी मध्यना वे भांगा साथे रहेवाथी आवीगयला जाणवा. जो, एम छे, तो शुं करवं ते कहे छे: उपर कहेला पदो (जेनाथी अर्थ समजाय; ते पद छे ते) आसवो विगेरे छे, (अने बीजानो अर्थ समजावा माटे शब्दना. | प्रयोगथी जे पदो अने अर्थ कहेवा जोग छे,) ते मने योग्यरीते समजवावडे समजेलो साधु विचारे के, दुनियाना जीवो आसवद्वार बनवल % RECE-
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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