SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 295
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - आचा० ब ॥५१०॥ - - -- जे मोक्षामिलापी साधुने लोकैपणा [संसारी वासना] नथी तेने बीजी आरंभनी प्रवृत्ति पण होती नथी, अर्थात् जेणे भोग वासना त्यागी, तेने वीजी आरंभ प्रवृत्ति क्याथी होय? एटले साधुने सावध अनुष्टाननी प्रवृत्ति न होय, कारण के सावध प्रवृत्ति 6 ग्रहस्थीनेज होय छे, सूत्रम् ____ अथवा हमणांज बतावेली प्रत्यक्ष सम्यक्त्व ज्ञाती जे जीवोने न इणया संबंधी वतावी ते दया जेने न होय तेवाने कुमार्ग तजवा ॥५१०॥ तथा सावध अनुष्ठान छोडवारुप वीजी विवेकनी बुद्धि क्यांथी होय ! (अर्थात् दया साथेज बीजी सुबुद्धि होय छे.) हवे शिष्यनी गति स्थिर करवा कहे, के जे तेने में कहुं ते सर्वज्ञ देवे केवळज्ञान वडे साक्षात् देखेलं छे, ते सेवा करवावडे में सांभळ्यु, ते लघुकर्मवाळा भव्य जीवोने मानवा योग्य छे, तथा ज्ञानावरणीय कर्मना क्षय उपशमथी विशेष प्रकारे जाण्यु, माटे विज्ञात छे, तेथी तमारे पण सम्यक्त्व विगेरे में तमने जे का तेमां तमारे यत्न करवो, जेओ उपर वतावेल मार्ग न आदरे तेओने ही शुं थाय छे ते कहे छे, ते ससारी मनुष्यो मनुष्य विगेरे जन्ममां अत्यंत गृद्ध बनीने वारंवार 'मनोज्ञ इंद्रियोना' विषयमा वारंवार | आनंद मानीने फरी फरीने एकेन्द्रि वे इन्द्रिय विगेरे जातिमां जन्म ले छे, पण संसारने तरी शकता नथी, जो आ प्रमाणे तत्वने || जाणनारा वर्तमान स्वाद लेनारा छे, जन्ममां आनंद माननारा इन्द्रिय विषयमां लीन थयेला वारंवार नवो जन्म विगेरे साधनारा 81 संसारी जीवो होय तो साधुए शुं करवू ते कहे छे, अहो अ राओ य जयमाणे धीरे सया आगयपण्णाणे पमत्ते बहिया पास अप्पमत्ते सपा +
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy