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________________ - आचा० ཏུབ༑ཏར་ ་ བསྐུ -5 सूत्रम् 18/॥१९॥ ॥४९॥ eHCHAA-कक माणत तथा आरण अच्युतनी ।। अगीयार मास दीक्षा ग्रैवेयकनी ॥ बार मास दीक्षा अनुत्तर विमाननी ।। त्यार पछी शुक्ल लेश्याने पामीने केवळज्ञान पामीने मोक्षमा जशे. जे अनंतानुबन्धी विगेरे कपायोने खपाववा तैयार थयो ते एक क्षय करवामांज वर्ने छे के नहि? ते बतावे छे. एगं विगिंचमाणे पुढो विगिंचइ, पुढोवि, सड़ी आणाए मेहावी लोगं च आणाए अभिसमिच्चा अकुओभयं, अस्थि सत्थं परेण परं, नत्थि असत्थं परेण परं (सू० १२४) अनंतानुवन्धी एक क्रोधने क्षपकश्रेणीमा चढेलो साधु खपावे ते समये पृथक् बीजी पण दर्शनादि कर्मप्रकृति खपावे छे, अने तेणे आयु बांध्यु छे, ते पण दर्शनसप्तक एटले, अनंतानुवन्धी कषाय चार तथा दर्शनमोहनीयनी त्रण सुधी खपावे छे. अथवा, वीजी प्रकृति खपावतां अवश्ये अनंतानुबन्धी नामनी प्रकृति खपावे छे. जो, तेम न खपे तो, मूत्रमा कहेल एकना क्षयमा वीजी क्षय थाय तेवू न कहेवाय. केवा गुणवाळो क्षपकश्रेणीने योग्य थाय ते कहे छे: 'सट्टा' विगेरे, श्रद्धा एटले मोक्षमार्ग मेळववाना उद्यमनी इच्छा करे; ते श्रद्धावाळो (श्रद्धी) कहेवाय. एटले, तीर्थंकर प्रणीत आगम अनुसारे यथोक्त अनुष्ठान करनारो मेघावी अप्रमत्त साधु) जे मर्यादामा रहेछे, तेज श्रेणीने योग्य छे पण वीजो योग्य नथी. - चळो, लोक एटले छ जीवनिकाय, अथवा कषायलोकने जिनेश्वरना आगम प्रमाणे जाणीने ते जीवोना समूहने कोइपण रीते भय न थाय तेम साधुए वर्तन करवू.
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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