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________________ सूत्रम् हिंसा विगेरेथी भयजनक कर्म बांधे छे. आचा० ते अथवा सर्वत्र एटले, अहीं अने परलोकमां बने ठेकाणे प्रमाद करनारने भय छे. पण अप्रमादीने क्यांय पण भय नथी, ते बतावे छे के, आलोक के. परलोकमां अपायोथी आत्महितमां जागृत रहेनार अप्रमादीने संसार अपसद (निमकहराम विश्वाघाती,) ॥४८७॥ थी अथवा अशुभ कर्मथी कोइ प्रकारे भय नथी; अने कषायना अभावथी अप्रमत्तता थाय छे, तेथी बधां मोहनीयकर्मनो अभाव ४ ॥४८७॥ में थाय छे, तेथी संपूर्ण कर्मनो क्षय थाय छे. तेथी ए प्रमाणे एकना अभावमां घणाना अभावनो संभव थाय छे, तथा एकनो अभाव पण बहु अभावथी जुदो नथी. तेटला माटे हेतु, अने हेतुवाळा पदार्थना भावने गत प्रत्यागत मूत्रवडे वतावेल छे. जे प्रवर्धमान शुभ अवयवसायना कंडकमां चढेलो साधु जे, एकला अनंतानुवंधी क्रोधने क्षय करे छे, ते, मान विगेरे बहुने खपावे छे. अथवा, पोतानाज भेदवाळा अप्रत्याख्यान विगेरेने खपावे छे. तथा, एकला मोहनीयने खपावतां पीजी प्रकृतिओने पण खपावे छे. अथवा जे, घणी स्थितिवाळाने खपावे छे, ते साधु अनतानुबन्धी एकने अथवा, मोहनीयकमने खपाये छे, ते वतावे छे. जेमके-अगणोतेर । ४ ६९ मोहनीय कोडा-काडी क्षय गया पछी, ज्ञानावरणीय, दर्शानावरणीय, वेदनीय, अंतराय, ए चारनी २९ तथा नामगोत्रनी १९ कोडा-कोडी खपी गया पछी, अने तेमां पण थोडु ओछं थया पछी मोहनीय कर्मनो क्षपण थवाने योग्य थाय छे, पण, ते शिवाय न थाय. तेथी का छे केः-जे बहु नाम होय; तेज परमार्थथी. एकनामवाळो छे. अहीं नामनो अर्थ कर्मप्रकृतिनो क्षय, अथवा, उपशम करनार जाणवो. एक उपशम श्रेणीना आश्रयथी एक तथा, बहु उपशम करवावडे बहु उपशमता जाणवी. तेथी ए प्रमाणे बहु तथा, एक कम ना अभाव शिवाय मोहनीयक्षय अथवा, उपशमनो अभाव थाय; अने तेना अभावमा एटले, जो, मोहनीयक्षय D... .....- - - AA-%AA-K
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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