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________________ आचा० ॥ ४८५ ॥ भेदनारो छे. तीर्थकरना उपदेशवडे पण, पारकानां करेलां कर्मना क्षयना उपायनो अभाव होय तेथी स्वकृत लीधुं. तेथी तीर्थंकरे पण पारकाना करेला कर्मना खपाववानो उपाय नथी जाण्यो एवी कोइने शंका थाय तेनो उत्तर. एम नथी. कारण के तेमना ज्ञानमां वधा पदार्थोनी सत्ता व्यापीने रहेली छे. (परंतु करे ते भोगवे ए नियमथी दरेके कर्म कापवा उद्यम कर वो जो ए.) शंका — हेय उपदेय पदार्थने छोडबुं ग्रहण करतुं तेंना उपदेशने जाणवाथी सर्वज्ञ नथी एवं अमे कहीए छीए. कारण के उपदेश मात्रथी परोपकार करवाथी तर्थंकरपणानी उत्पत्ति घटती नथी उत्तर युक्तिना विकलपणाथी उत्तम पुरुषना मनने तमारुं कहें आनंद आपतुं नथी, कारणके उत्तम ज्ञान विना हित अहितनी प्राप्ति तथा त्याग उपदेशनो असंभव छे. अने एक पदार्थनुं पण संपूर्ण ज्ञान सर्वज्ञपणा विना घटतुं नथी ते सूत्रकार बतावे छे. जे एगं जाणइ से सबं जाणइ, जे सवं जाणइ से एगं जाणइ (सू० १२२) जे कोइ पण ज्ञानी परमाणु विगेरे एक द्रव्यने तेना पछीना के पूर्वना पर्याय सहित जाणे, अथवा पोताना अथवा पारकाना वधा पर्यायोने जाणे छे; कारण के तेवा पुरुषने अतीत अनागतमां वनेला अने बनवाना पर्यायो सहित द्रव्यने जाणवाथी तेने वधी वस्तुनुं ज्ञान अविनाभावीपणे छे. हवे तेने हेतु तथा हेतुवाळा पदार्थ सहित वीजी रीते कहे छे. जे सर्व पदार्थो संसार उदरमां रहेला छे तेने जाणे छे ते एक घट विगेरे एक वस्तुने जाणे छे, तेज ज्ञानीने अतीत अनागत पर्याय- दोवडे ते ते स्वभावनी आपत्तिवडे अनादि अनंतकाळपणे समस्त वस्तु स्वभावमां जाणपणुं थाय छे. कधुं छेः सूत्रम् ॥४८५॥ 1213
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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