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________________ तानुवन्धी अप्रत्याख्यानी प्रत्याख्यानी तथा संजवलनी अंदर रहेल भेदो बताववाने माटे जुदा जुदा बताव्या छे, अने चशब्द आचा० मुकवाथी ते दरेकनी उपमा पर्वत पृथ्वी रेणु जळ राजीनी क्रोधनी छे, तथा शैल स्तंभ हाडकुं लाकडं तिनिशलता माननी छे, तथा सूत्रम् वांस कुडंगी (थडीउं) मेष अंग गोमुत्रिका अवलेखनीनी उपमा.मायानी छे, तथा कृमीराग कर्दम खंजन हरिद्रानी उपमा लोभने ॥४८३" छे, तथ आखी जींदगी सुधी एक वरस सुधी चार मास अने पंदर दिवसनी स्थिति अनुक्रमे दरेकनी छे, (आ बधानुं वर्णन आज ॥४८३॥ सूत्रमा पाने छे त्यांथी जोg.) आ प्रमाणे क्रोध, मान माया लोभ त्यागवाथी खरी रीते साधुपणुं छे पण क्रोध होय त्यां सुधी साधुपणुं नथी; कह्यु छे केःसामण्णमणुचरंतस्स कसाया जस्स उकडा हुंति । मन्नामि उच्छुपुप्फ व निप्फलं तस्स सामपणं ॥१॥ साधुपणुं पाळता साधुने जो कषायो वधारे प्रमाणमां होय तो शेरडीना फुल माफक तेनुं साधुपणुं हुं निष्फळ मार्नु छु.॥ ___ जं अजिअं चरित्तं देसूणाएवि पूवकोडीए । तंपि कसाइयमेत्तो हारेइ नरो मुहुत्तेणं ॥२॥ पूर्व कोडीमां थोडा वर्ष ओछां एवु ( आटली लांबी मुदतनुं) चारित्र पाळ्युं होय, ते जो उत्कृष्ट क्रोध करे तो ते माणस एक मुहुर्तमां साधुप' हारी जाय छे. आ वधु पोतानी बुद्धिथी नथी कर्जा एबुं बताववा गौतमस्वामी कहे छे के 'एय' विगेरे आ कषाय दूर 1४/ करवानुहमणा उपर बताव्यु, ते बधुं सर्वदर्शी पश्यक साक्षात् देखे छे, कारण के तेने निवारण (केवळ) ज्ञानदर्शन छे, अने ते ४ पश्यक तीर्थकृत् वर्धमना स्वामी छे, अने तेमनुं दर्शन (अभिप्राय मंतव्य) आ छे. ---ॐॐॐ
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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