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________________ आचto ॥४३५॥ द्रव्य अने भाव ए वे प्रकारनी निद्राथी सुतेला जीवो अज्ञानी छे. तेमने थता दुःखथी दूर रहेतुं ए ज्ञाननुं फळ छे. समय एटले आचाराङ्गसूत्रमां बतावेल अनुष्टान ( संयम ) ने जाणीने अथवा लोक एटले जीवसमूहने जाणीने तेने जे शस्त्रोथी दुःख थाय ते शस्त्र ज्ञानी साधुए न जणाववा (ज्ञान भणवानुं फळ ए छे के कोइ पण जीवने दुःख न देवं) आ प्रमाणे पहेलांना सूत्र साथै बीजा सूत्रो संबन्ध छे, कारण के संसारी जीवो भोगना अभिलाषीपणाथी जीवहिंसा विगेरे कषाय हेतुवाळं कर्म बांधीने नरक विगेरे पीडाना स्थानमां उत्पन्न थाय छे. त्यांथी कोइ वखते नीकळीने बधा दुःखोनुं नाश करनार धर्मनुं कारण जेमां छे तेवुं आर्यक्षेत्र विगेरेमां मनुष्य जन्म पामे छे. बळी त्यां पण ( धर्म पाळवाने बदले ) महा मोहना कारणे मोहित मतिवाळो बनी ( इन्द्रियोना स्वादने माटे ) एवां एवां कार्य करे छे के जेने लीघे ते नीचेनीचे (नारकीमां) जाय छे, पण संसारमाथी पार पहचतो नथी (आवुं लोकोनुं वर्तन जाणीने तेवुं तमारे न करयुं.) अथवा समभाव एटले समता (समयनो अर्थ समता लीधो) छे तेने जाणीने बधा जीवो उपर एटले पोताना आत्मा बरोबर परने जाणीने अथवा शत्रु मित्रने समभावे जाणीने तेमना उपर राग द्वेष तुं न कर, अथवा बधा जीवो एकेन्द्रियथी पंचेन्द्रिय सुधी पोताना उत्पन्न थवाना स्थानमां रमवानी इच्छावाळा छे, मरणथी ढरे छे, सुखना चाहक छे. दुःखना द्वेषी छे आबुं तेओनुं समानपणुं जाणीने साधुए शुं करधुं ते कहे छे, छ जीवनीकायना द्रव्य भावना भेदवाळा शस्त्रथी दूर रहेवा धर्म जागरणथी जागतो रहे, अथवा जेजे संयमनां शस्त्रो छे ते ते आस्रवद्वार प्राणातिपात विगेरे छे.. अथवा शब्द विगेरे पांच प्रकारना काम गुणो (विषयप्रेम) छे. तेनाथी जे दूर रहे ते मुनि छे. तेज सूत्रकार कहे छे के जे मुनिने पोताना आत्माना अनुभवेला बीजा बधा प्राणी संबन्धी इन्द्रियोनी प्रवृत्तिना विषयरूप शब्द, रूप, रस, गंध अने स्पर्श ते सुदर अने सूत्रम् ॥४३५ ॥
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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