SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 197
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचा० ॥४१४॥ | क्यांथी होय ? आ प्रमाणे छे तो, धर्मकथा केवीरीते करवी ते कहे छेः जे, पोतानी इन्द्रियोने वशमां शखनारो छे, अने विषय विपनो वेरी छे, संसारथी उद्वेग मनवाळो छे, अने वैराग्यथी जेतुं हृदय खेचायलं छे, तेवो माणस धर्मने पूछे तो, ते समये आचार्य विगेरे धर्मकथा कहेनारे विचारखुं के, आ पुरुष केवो छे ? मिथ्यादृष्टि छे के भद्रक छे ? अथवा, केवा आशयथी पूछे छे ? एनो इष्टदेव क्यो छे ? एणे क्यो मत मान्यो छे ? विगेरे विचारीने योग्य उत्तर समय उचित कहेवो ते बतावे छे. एनो सार आ छे के धर्मकथानी विधि जाणनारे पोते आत्ममां परिपूर्ण होय ते सांभळनारनो विचार करे के द्रव्यथी ते केवो छे. तथा आ क्षेत्र केबुं छे ? जेमां तच्चनिक भागवत अथवा वीजा मतवाला अथवा पतित साधुए अथवा उत्कृष्ट साधुओए आ क्षेत्र केवा रूपमां वनान्युं छे. अने काळ ते सुकाळ छे के दुकाळ छे. अथवा वस्तु मळे तेम छे के नहीं. अने भावथी जो के पूछनार | माणस मध्यस्थ भाववाळां छे. के रागी द्वेषी छे, विगेरे विचारीने जेम ते बोध पामे, तेवी धर्मकथा करवी. उपरना गुणवाळो माणस धर्मकथा करवाने योग्य छे. वीजाने अधिकार नथी. कयुं छे के 'जो हेउवापक्खंमि, हेउओ आगमम्मि आगमिओ । सो ससमयपण्णवओ सिद्धंत विराहको अपणो |१| ' जे हेतुवाद पक्षमां हेतुने बतावनार छे, आगममां आगम वतावनार छे. ते स्वसमयनो प्रज्ञापक (उन्नति करनार ) अने बीजो सिद्धांतनो विराधक छे. (जो पूछनार हेतु मागे तो हेतु बतावे अने युक्तिथी सिद्ध करे अने आगम प्रमाण मागे तो आगम बतावे ते बन्नेनो जाणनारो वीजाने धर्मकथा कहे ते योग्य छे.) सूत्रम् ॥४१४॥
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy