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________________ 3GNCE आचा० सूत्रम् ॥३९८॥ ॥३९८॥ अथवा, ते साधु ज्ञान विगेरे, मोक्षतुं साचुं कारण छे, एम जाणीने, संयम-अनुष्ठानमांसावध थइने सर्वसावध (पापनां) कृत्य मारे न करवां; एवी प्रतिज्ञारूपपर्वत उपर चडीने शुं करे छे ? ते कहे छे:र आ सावधना आरंभनी निवृत्तिरूप-संयम लीधो छे, तेथी, मुनिए पापकर्मनी क्रिया न करवी. मनथी पण इच्छयी नहीं; पोते बीजा पासे पण कराववी नहीं; एटले, नोकर विगेरेने पापकर्ममां मेरवां नहीं; तथा, “१८" प्रकारर्नु पापजीव-हिंसा, जुलु, चोरी, कुचाल, परिग्रह ममता, क्रोध, मान, माया, लोभ, रागद्वेष, कजीओअभ्याख्यान, पैशून्य रति अरति, परनिंदा, मायामृपावाद, (कपटन जुठ,) मिथ्यादर्शन-शल्यने पोते न करे; तेम न बोजा पासे न करावे; तथा, पाप करनारी प्रशंसा न करे; एम, मन, वचन, कायाथी त्याग करे. प्रश्नः-एक पाप करे; तेने बीजां पाप लागे के नहीं ? उत्तरः-ते शास्त्रकार बतावे छे. सिया तत्थ एगयरं विप्परामुसइ छसु अन्नयरंमि कप्पइ सुहट्टो लालप्पमाणे, सएण दुक्खेण मूढे विपरियासमुवेइ, सएण, विप्पमाएण पुढो वयं पकुवइ, जसिमे पाणा पवहिया पडिहाए नो निकरणयाए, एस परिन्ना पवुच्चइ कम्मोवसंती । (सू० ९७) कोइ पापआरंभमां पृथ्वीकाय विगेरेनो समारंभ करे छे, ते एक प्रकारचें आश्रवद्वार प्रारंभे छे, ते छ कायना आरंभमां वर्ते छे, ते जाणवू. जोके, पोते एकने हणवानो विचार करे छे, छतां संबधने लीधे सर्व हणाय छे. RROREGARDASRENCES
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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