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आचा०
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वाळं द्रव्य एकपणे होवाथी आंखथीज रस पण खाटो-मीठो परखावो जोइए, कारण के रूप देखाय तेम रस पण जणावो जोइए, एटले रूप अने रस साथै देखाय. तो सर्वथा अभेदपशुं छे, पण तेम तथी. रस पारखवामां जीमनुंज काम छे माटे कंइ अंशे घट अने वस्त्र जेम जुदा छे तेम कइ अंशे गुण आत्माधी जुदा छे. आ प्रमाणे भेद अने अभेद एम वे बताववाथी शिष्य गमराइने आचार्यने पूछे छे के बने रीते मानवामां दोप आवे छे. तो केम मानीए आचार्य कहे छे -- एटला माडेज दरेकमां कं अंशे भेद अने कंइ अंशे अभेद मानवुं सारं छे एटले अभेद पक्षमां द्रव्य पोतेज गुण छे. अने भेद पक्षमां भाव गुण जुदो छे. तेज प्रमाणे गुण अने गुणी पर्याय अने पर्यायी सामान्यने विशेष अवयव अने अवयवीनो भेद अने अभेदनी व्यवस्था बताववा वटेज आत्मभावनो सद्भाव थाय छे, कहाँ छे के
दव्वं पज्जवविजयं दव विउत्ता य पजवा णत्थि । उप्पायट्टिइभंगा, हंदि दवियलक्खणं एयं ॥ १ ॥ द्रव्य ते पर्यायथी जुदुं छे. अने द्रव्यथी जुदा पर्यायो छे एवं क्योंय नथी. पण उत्पाद, स्थिति अने नाश एवा पर्यायोवाळं द्रव्यलक्षणजाण यास्तव स्यात्पदलांछिता इमे, रसोपविद्धा इव लोहधातवः । भवन्त्यभिप्रेतफला यतस्ततो, भवन्तमार्याः प्रणता हितैषिणः ॥ २ ॥
हे भगवंत ! तमारा कला नया स्यात् पदे करीने शोभे छे. जेम लोह धातु रसे करीने व्याप्त थयेली ( सोनुं बनेली ) इच्छित फळने आपनारी छे. तेथी उत्तम पुरुषो जे हितना वांच्छको छे तेओ नमस्कार करीने आपने आशरे रहेला छे. स्पादनाद मतने
सूत्रम्
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