SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचा० ॥ ३८२॥ कोइ नानुं कार्य गमे ते साधी लेवाय, पण मोडं कार्य तेम सिद्ध न थाय. कदाच नानुं खावोच्युं कुदीने जवाय पण नाव विना समुद्रनी पार जयुं शक्य नथी. जेओ धर्मोपकरणने पण परिग्रह माने छे, तेवा दिगंबर बंधुओ माटे आ संबंधमां मतभेद छे, तेथी अविवक्षित अर्थने तौर्थंकरना अभिप्रायने अनुसारे साधवानी इच्छार्थी कहे छे, के “ एसमग्गे " मूळ सूत्रमां वतान्याप्रमाणे आ धर्मोपकरण परिग्रहने माटे नथी, एव पूर्वे कयुं, ते मार्ग तोर्थंकरोए कह्यो छे, कारण के सर्व पापरूप "हेय" धर्मथी जेओ दुर छे. ते आर्थो, तीर्थकरो, छे, पण जेओ धर्मोपकरणने इच्छता नथी. तेवाओए पण कुंडिका, तट्टिका लंबणिका अश्ववाळधि, विगेरे इच्छानुसार उपकरण राखवानो मार्ग पोतानी मेळे शोधी काव्यो छे, तेम अमारा उपकरणो नथी. ( वर्त्तमानमां श्वेतांबर साधुओं पासे रजोहरण मुहपत्ति विगेरे धर्मोपकरणो छे, त्यारे दिगंबर साधुओ पासे मोरनी पीछीनुं उपकरण विगेरे छे, अने टीकाकारना समयमां ते बखते दिगंबर साधुओ जेम करता हशे तेने उद्देशीने लख्युं छे, खरीरीते ते चर्चा करवा करतां परमार्थद्रष्टिए जोनारा बन्ने पक्षना साधुओ रागद्वेष रहित बनी जे भविष्यमा अने वर्तमानमां वधारे लाभदायी थाय dai धर्मोपकरण वापरी संयमनो निर्वाह करे अने सम्यक्ज्ञान दर्शन चारित्रनी आराधना करे.) अथवा उपरनी चर्चा चौद्ध मतना मौगल तथा स्वाति पुत्र ए बन्नेथी बौद्ध मतनुं जे मंतव्य छे. तेने आश्रयी कहे छे. तेज प्रमाणे धर्मोपकरणनुं कोइ खंडन करतो होय. तो तेमने पण ते प्रमाणे समजावत्रा. कारण के जिनेश्वरे परोपकारना माटे रागद्वेष रहित धइने जे कयुं छे. तेना बहु मानना माटे आटलं लखवुं पड. अने सूत्रम् ॥३८२॥
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy