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________________ अहंकार, दीनता, न करवां तेवू सूत्रमा कयुं छे. कारण के अनादि संसारमा भटकता जीवे भाग्यने आधारे घणी वार उंच नीच गोत्रनां स्थान अनुभवेलां छे. तेथी कोइ वखत उंच नीच गोत्र मेळवीने डाह्यो पुरुष जे खराब तथा सारी वस्तुने ओळखे छे ते आचा० उंच गोत्र विगेरेथी अहंकार न करे. कयु छे के॥३३४॥ "सर्व सुखान्यपि बहुशः प्राप्तान्यटता मयाऽत्र संसारे । उच्चैः स्थानानि तथा, तेन न मे विस्मयस्तेषु॥१॥॥३४॥ वा ए सुखोने में आसंसारमा भमतां मेळव्यां छे. उंच स्थान पण मेळव्यां छे, तेथी हवे मने तेनामां कांइ आश्चर्य जोवामां आवतुं नथी. जह सोऽवि णिज्जरमओ पडिसिद्धो अहमाण महणेहि। अवसेस मयट्ठाणा, परिहरि अवा पयत्तेणं ॥२॥ जो के, निर्जराने माटे ऊंच गोत्रना मदनो निषेध कर्यो छे, तोपण आठ मानने मथनारा साधुओए प्रयत्नवडे बीजां मदस्थान पण त्यागी देवां. तेजप्रमाणे नीच गोत्रमा के निंदनीक स्थानमां उत्पन्न थइने दीनता न करवी. तेज सूत्रमा का छे केः-"नो15 कप्पे" भाग्यवशथी लोकमां निंदनीक जाति कुळ रूप बळ लाभ विगेरेमां ओछापणुं पामीने साधुए क्रोध न करवो मनमां विचारखं के मारे नीच स्थान अथवा बीजाना हलका शब्द सांभळीने मारे दुःख शा माटे मानवु, में पूर्व तेवू घणीवार भनुभव्यु छे तेथी , दीनता न करवी कयुं छे के. “ अवमानात्परिभ्रंशावधबन्धधनक्षयात् । प्राप्ता रोगाश्च शोकाश्च जात्यन्तरशतेष्वपि ॥१॥ अपमानथी नीच दशा थवाथी अथवा वध बन्ध के धनना क्षयेथी माणसे खेद न करवो कारण के पूर्वे आ जीवे रोग शोक AGARAK
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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