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________________ निज ज्योति स्वरूप उद्योतमई, तिसमें परदीप्त रहै नित ही। यह ताप स्वरूप उधारत है, हम पूजत पाप विडारत हैं ॥१७॥ ॐ ह्री स्वरूपतापतपसे नम. अयं । नित नंत चतुष्टय राजत है, हग ज्ञान बला सुख छाजत है। यह आप महागुरण धारत हैं, हम पूजत पाप विडारत हैं ॥१८॥ *ह्री अनन्तचतुष्टयाय नमः अर्घ्य । सुख समकित प्रादि महागुण को, तुम साधित सिद्ध भये अबहो । यह उत्तम भाव सुधारत हैं, हम पूजत पाप विडारत है ॥१६॥ ___ॐ ह्री सम्यक्त्वादिगुणात्मकसिद्ध भ्यो नम अयं । दोहा--निश्चय पंचाचार सब, भेद रहित तुम साध । चेतनकी अति शक्तिमें, सूचत सब निरबाध ॥२०॥ . ॐ ह्री पंचाचाराचार्येभ्यो नमः अर्घ्य । चौपाई-सब विकलप तजि भेद स्वरूपी, निज अनभूतिमग्न चिद्रू पी। निश्चय रत्नत्रय परकासो, पूजू भाव भेद हम नासो ॥२१॥ ॐ ह्री रत्नत्रयप्रकाशाय नमः अध्यं । पचम
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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