SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिद्ध वि. दो अन्तिम गुरणथान, भाव सिद्ध इस लोक मे। तथा द्रव्य शिव थान, सर्व सिद्ध प्रणम् सदा ॥४७॥ ॐ ह्री णभो लोए सबसिद्धभ्यो नम अयं । शत्रु व्याधि भय नाहि, महावीर धीरज धनी। नम् सिद्ध जिननाह, संतनिके भवभय हरै ॥४८॥ ॐ ह्री भगवते महावीरवड्ढमाणाय नम अध्यं । क्षपकश्रेरिण प्रारूढ़, निजभावी योगी यथा। निश्चय दर्श अमूढ़, सिद्ध योग सब ही जजो ॥४६॥ ॐ ह्री णमो योगसिद्धाय नम अयं । वीतराग परधान, ध्यान करे तिनको सदा। सोई ध्येय महान, णमो सिद्ध हम अघ हरो ॥५०॥ ह्री णमो ध्येयसिद्धाण नम अयं । लोक शिखर शिव थान, अचल विराजत सिद्ध जन। लोकवास सर्वान, भये सिद्ध प्ररणमू सदा ॥५१॥ ॐ ह्री णमो सव्वसिद्धारण नम अध्यं । प्रथम पूजा
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy