SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 5 wwmwwwwmiunny mamannawon जय विघन नशायक मंगलदायक, तिहूँ जगनायक परमपरा ॥ ॐ ह्री सिद्धचक्राधिपतये नम. द्वात्रिंशत्गुणयुक्तसिद्ध भ्यो नम पूण घ्य नि।। अथ चतुर्थ पूजा चौसठ गुर सहित अथ चतुःषष्ठि दलोपरि चतुर्थ पूजा उच्यते । छप्पय छन्द-ऊरध अधो सुरेफ . बिंदु हंकार विराजे, अकारादि स्वर लिप्त करिणका अन्त सु छाजे । वर्गन पूरित ' वसुदल अम्बुज तत्व संधिधर, अग्रभागमें मंत्र अनाहत सोहत अतिवर ॥ फुनि अंत ही बेढ्यो परम, सुर ध्यावत अरि नागको। हवै केहरि सम पूजन निमित, सिद्धचक्र मंगल करो। ____ह्री णमो सिद्धाण श्री सिद्धपरमेष्ठिन् प्रत्रावतरावतर सवौषट् आह्वानन। अत्र तिष्ठ । तिष्ठ ठ ठ स्थापन । अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरण । परिपुष्पाजलिं क्षिपेत् । दोहा-सूक्ष्मादिक गुण सहित है, कर्मरहित नीरोग। सिद्धचक्र (सकल सिद्ध) सो थापहूं, मिट उपद्रव योग । इति यंत्र स्थापन। पूजा anwarunnine
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy