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________________ - - भेंट करत तुम इनहन भेट, रह चिरकाल अघाई ॥प्रभु पूजोरे० । १ ४ ही नमो सिद्धाण श्री सिद्धपरमेष्ठिने श्री समत्तणाणदसणवीर्य सुहमत्तहेव अवग्गाहण सिद्ध अगुरुनघुमव्वावाह बत्तीसगुणसयुक्ताय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्य ।। ५ ॥ दिव्य रत्न इस देश कालमे, कहै कौन है नाई। तुम पद भेटे दीप प्रकट यह चिंतामणि पद पाई ॥प्रभु पूजोरे० ३ ॐ ह्रो नमो सिद्धाण श्री सिद्धपरमेष्ठिने श्री समत्तणाणदसणवीर्य सुहमत्तहेव अवग्गाहण अगुरुल घुमवावाह बत्तीसगुण सयुक्ताय मोहाधकार विनाशनाय दीप ॥ ६ ॥ धूप हुताशन वासनमे धर, दसदिश वास वसाई । तुम पद पूजत या विधि वसु विधि, ईधन जर हो छाई ॥प्रभु पूजोरे० ___ह्री नमो सिद्धाण श्री सिद्धपरमेष्ठिने श्री समत्तणाणदसणवीयं सुहमत्तहेव अवगाहण अगुरुल घुमवावाह बत्तीसगुणसयुक्ताय अष्टकर्मदहनाय धूप ।। ७ ।। १ सर्वोत्तम फल द्रव्य ठान मन, पूजू हूँ तुम पाई। जासौ जजै मुक्तिपद पइये, सर्वोत्तम फलदाई ॥प्रभु पूजोरे० पूजा । ॐ ह्री नमो सिद्धाण श्री सिद्धपरमेष्ठिने श्री समत्तणाणदसणवीर्य सुहमत्तहेव अवग्गाहण! २५ अगुरुलघुमवावाह बत्तीसगुणसयुक्ताय मोक्षफलप्राप्ताय फल ।। ८ ।। Arunimam प्रथम
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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