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________________ सिद्ध० बि० ४०५ [ पूर्ण आशीर्वाद ] डिल्ल छन्द | पूरण मंगलरूप महा यह पाठ है; सरस सुरुचिं सुखकार भक्तिकोठाठ है । शब्दग्रर्थ मे चूकहोय तो होकहीं; श्रुतिवाचक सबशब्द अर्थ यामेंसही |१| जिनगुणकररण प्रारंभहास्यकोधाम है; वायसका नहिसिंधु उतीरण कामहै पै भक्तनिकी रीति सनातन है यही; क्षमाकरो भगवंत शांति पूररणमही । २ इत्याशीर्वाद - परिपुष्पाञ्जलि क्षिपेत् । इति श्री सिद्धच पाठ भाषा — कवि सन्तलालजी कृत ममाप्त । जाप्य मत्र - ॐ ह्रीं असि श्रा उ सा नम ॥ १०८ ॥ ★ ★ श्री सिद्धचक्र की आरती www जय सिद्धचक्र देवा जय सिद्धचक देवा । करत तुम्हारी निश दिन मन मे सुरनरमुनि सेवा ॥ जय ॥ ज्ञानावर दर्शनावरणी मोह अन्तराया । नाम गोत्र वेदनि आयु को नाशि मोक्ष पाया ॥ जय ॥ ज्ञान अनत अनत दर्श सुख वल अनतवारी । अव्यावाघ अमूर्ति प्रगुरुलघु अवगाहनधारी ॥ जय ॥ प्रष्टम पूजा ૪૦′
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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