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________________ muurn सिद्ध वि. wwwwwnarieraniuminiuminine चहुँगतिमे नरदेह मझार, मोक्ष होत तुम नर आकार । सिद्धसमूह जजू मनलाय, भव भवमे सुखसंपतिदाय । सिद्ध० ॥ श्री ह्री अहे नराधिपाय नम अध्यं ॥८४६॥ दर्श ज्ञान चेतन की लार, निरावर्ण तुम हो अविकार । सिद्ध० ॥ पो ह्री प्रहं निगवरणचेतनाय नम अध्यं ।।१४७॥ भावन वेद वेद नरदेह, मोक्ष रूप है नहिं सन्देह । सिद्ध० ॥ प्रों ह्रीं पर्ह मोक्षरूपजिनाय नम अध्यं ।।९४८।। । सत्य यथारथ हो सब ठीक, स्वयं सिद्ध राजो शुभ नीक । सिद्धसमूह जजू मनलाय, भव भवमे सुखसंपतिदाय । सिद्ध०॥ "ओ ह्रीं अहं अकृत्रिम जिनाय नम अध्यं ॥४॥ दोहा-जाकरि तुमको जानिये, सो है अगम अलक्ष । इनिर्गण यातै कहत है,भव भयतै हम रक्ष॥ ही अहं निर्गुणाय नम प्रध्यं ॥५०॥ चेतनमय हैं अष्टगुण, सो तुममें इक नाम । मामोह्रींमहं प्रमूर्ताय नम. अयं ॥५१॥ अष्टम पूजा ३७६
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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