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________________ 7 सिद्धः वि० ३७१ 1 इष्टानिष्ट न राग न द्व ेष, ज्ञाता दृष्टा हो अविशेष | सिद्ध० ॥ ग्रह निर्विकल्पाय नमः अयं । ८०८ || जो तुम सम नहीं भगवान, धर्माधर्म रीति बतलान । सिद्ध० ॥ ह्रीं द्वितीयबोधजिनाय नम प्रध्यं ॥ ८० ॥ महादुखी संसारी जान, तिनके पालक हो भगवान | सिद्ध० ॥ ह्री ग्रह लोकपालाय नमः श्रध्यं ।। ८१० । जगविभूति निरइच्छुक होय, मानरहित श्रातम रत सोय । सिद्ध० ॥ अहं श्रात्मरसरत जिनाय नम श्रध्यं ॥ ८११ ॥ ज्यों शशि तापहरै अनिवार, अतिशय सहित शांति करतार | सिद्ध०॥ ह्री शातिदात्रे नमः अष्य । ८१२ ।। हो निरभेद छेद अशेष, सब इकसार स्वयं परदेश | सिद्ध० ॥ ह्री ग्रह प्रभेद्याछेद्य - जिनाय नम अयं ॥ ८१३॥ मायाकृत सम पांचो काय, निजसों भिन्न लखो मत ॐ ह्रीं श्रहं पच कषमयात्मदृशे नम ग्रध्य ॥ ६१४ ॥ बीती बात देख संसार, भवतन भोग विरक्त उदार । सिद्ध० ॥ ॐ ह्रीं श्रीं भूतार्थ भावनासिद्धाय नमोऽध्य ॥ ८१५ ।। J भाय । सिद्ध० ॥ अष्टम पूजा ३७१
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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