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________________ सिद्ध वि० ३६६ www कर्मविषै संस्कार विधान, तीनलोकमे विस्तर जान । सिद्धसमूह० ॥ ॐ ह्री सिद्धसमूहेभ्यो नम भ्रष्ट ।। ७९३ ।। धर्म उपदेश देत सुखकार, महाबुद्ध तुम हो अवतार । सिद्धसमूह० ॥ ॐ ह्रीं शुद्धबुद्धाय नमः श्रध्यं ।। ७१४ ।। तीन लोकमे हो शशि सूर, निज किरणावलि करि तम चूर । सिद्ध० ॥ ॐ ह्री पहं तमोभेदने नमः श्रयं ॥ ७६५ ।। धर्ममार्ग उद्योत करान, सब कुवादकी कर हो हान । सिद्ध० ॥ ॐ ह्री प्र धर्म मार्गदशकजिनाय नम मध्यं ॥ ७६६ ।। सर्व शास्त्र मिथ्या वा सांच, तुम निज दृष्टि लियो है जांच | सिद्ध० ॐ ह्री प्रसवशास्त्र निर्णायक जिनाय नमः श्रध्यं ॥७७॥ पंचमगति विन श्रेष्ठ न और, सो तुम पाय त्रिजग शिरमौर । सिद्ध० ॐ ह्री श्रहं चमगतिर्जिनाय नम अध्यं । ७६८ ।। श्रेष्ठ सुमति तुम्हीं हो एक, शिवमारग की जानो टेक | सिद्ध० ॥ ॐ ह्री श्रेष्ठसुमतिदात्रीजिनाय नम श्रध्यं ॥७६॥ वृष मर्जाद भली विधि, थाप, भविजन मेटे सब संताप | सिद्ध० ॐ ह्रीं श्रीं सुगतये नमः अध्यं ॥ ८ ॥ अष्टम पूजा ३६६
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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