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________________ www असुर काम पर हास्य इन, आदि कियो विध्वंश । सिद्ध महाश्रेष्ठ तुमको नमू, रहै न अघको अंश ॥ॐ ह्रीमहंप्रसुरध्वसिने नमःप्रध्या७२४॥ वि० सुधाधार द्यो अमरपद, धर्म थूलकी बेल । इशभ मति गोपिन संगमें, हमे रोख निज गेल॥ॐ ह्री प्रहं माधवाय नम:अध्य|७२५ ॥ विषय कषाय स्व वश करी, बलि वश कियो जु काम। ३ महाबली परसिद्ध हो,तुम पद करूं प्रमाण ॥ ह्रीमहं वलिवन्धनाय नमाअध्य|७२६ तीन लोक भगवान हो, निज परके हितकार। सरनर पश पूजत सदा,भक्ति भाव उर धार ॥ ह्रीमहं अधोक्षजायनम अध्या७२७, हितमित मिष्ट प्रिय वचन, अमृत सम सुखदाय । धर्म मोक्ष परगट करन,बंदूतिनके पाय॥होंअहं हितमितप्रियवचनजिनाय नम.मध्य निज लीलामे मगन है, सांचा कृष्ण सु नाम । अष्टम तीन खंड तिहुँ लोकके, नाथ करू पररणामहीमहं केशवाय नम अध्यं ।।७२९॥ पूजा सखे तुरंण सम जगत की, विभव जान करवास। धरै सरलता जोगमै, करै पापको नाश ह्रीं अहं विष्ट रश्रवसे नमःअध्यं ॥७३.15 more ३५६ mnian
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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