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________________ nounnawunurnwwnner मुनिजन ध्यावै भावयुत, महा मोक्षप्रद साध । सिद्ध भये मै नमत हूँ,चहूँ संघ आराध ॥ॐ ह्री प्रह महामारावे नम पय॑ ।।२६८। ६ ज्ञान ज्योति प्रतिभासमें, रागादिक मल नाहिं। विशद अनुपम लसतहो, दीप्तज्योतिशिवराह| ह्रींप्रविमला मायनम:मध्य ५६५ द्रव्यभाव मल नाशकर, शुद्ध निरंजन देव । निजातममें रमत हो, पाश्रय विन स्वयमेव ॥ॐ ह्रींमहं शुद्धात्मने नमःमभ्यं ।६०.१ शुद्ध अनन्त चतुष्ट गुरण, धरत तथा शिवनाथ । श्रीधर नाम कहात हो, हरिहर नावत माथ ॥ ह्रींप्रहं श्रीधराय नम. पथ्यः६.१॥ ६ मरणादिक भयसे सदा, रक्षित हैं भगवान । । स्वयं प्रकाश बिलासमे, राजत सुख की खान ॥ॐ ह्रींपर्हमरणभयनिवारणाय नमः ६ राग द्वेष नहीं भावमे, शुद्ध निरंजन प्राप। ज्योकत्यो तुम थिर रहो, तनक न व्याप पाप ॥ॐ ह्रीमहंप्रमनमायायनम अध्य६०२ पूजा भवसागर से पार हो, पहँचे शिवपद तीर। ३३४१ भावसहिततिन नमत,लहून पुनि भव पीर ह्रींपहं उद्धरणायनमामय।६०४१४ प्रष्टम
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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