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________________ mmunmun वि० ३२९ वीतराग निर्विकल्पं है, ज्ञान उदय निरशंस। समरसभाव परम सुखी, नमत मिटै दुख अंश ॥ ही पहंस्कृरितममरसीमावायनम एकै रूप विराजते, नय विकल्प नहिं ठौर। सिद्ध वचन अगोचर शुद्धता, पापविनाशो मोर ॥ॐ ह्रीं ग्रह एकीमायनयरूपाय नमःप्रयं परम दिगम्बर मुनि महा, समदृष्टी मुनिनाथ। ध्या पावं परम पद, नमू जोर जुग हाथ ॥ॐ ह्री महनिग्रन्यनाथायनमःपय ५१६३ । योग साधि योगी भये, तिनको इन्द्र महान। ध्यावत पावत परम पद, पूजत निज कल्याण ॥हीमहंयोगोन्द्रायनम अध्य।५१७ ॥ । शिव मारग सिद्धांतके, पार भये मुनि ईश। तारण तरण जिहाजहो, तुम्हेनमूनित शीश॥ह्रीमहं ऋषये नम अध्यं ॥५१८॥ निज स्वरूपको साधिकर, साधु भये जग माहि । निजपर हितकर गुणधरै, तीनलोकनमिताहि॥ ह्रीमहं माधवे नम प्रत्र्यं ॥५१॥ पूजा रागादिक रिपु जीतके, भये यती शुभ नाम । १ ३२९ धर्म धुरंधर परम गुरु, जुगपद करू प्रणाम ॥*हीग्रह पतये नमःमध्यं ॥२०॥ प्रष्टम
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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