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________________ ३१८ महा भूति इस जगतमे, धारत हो निरभंग। सिद्ध सब विभूति जग जीतिक, पायो सुख सरवंग॥ ही अहं जगत्प्रभवे नम अध्यं ।४३७ वि० मुनि मन करण पवित्र हो, सब विभावको नाश । तुमको अंजुलि जोरकर, नमूहोत अघनाश ॥ ही अहं पवित्राय नम अध्यं ।४३८। मोक्ष रूप परधान हो, ब्रह्मज्ञान परवीन । बंध रहित शिव-सुख सहित, नमैसंत प्राधीन ॥ ही महंपराक्रमायनम प्रय। ४३६ जामें जन्म मरण नहीं, लोकोत्तर कियो वास। अचल सुथिर राजै सदा, निजानंद परकाश ॥ॐ ह्री ग्रह परत्राय नम अयं ।।४।। मोहादिक रिपु जीतके, विजयवन्त कहलाय । जैत्र नाम परसिद्ध है, बंदू तिनके पाय ॥ॐ ह्री अहं जैत्रे नमः अर्घ्य । ४४१।। रक्षक हो षट् कायके, कर्म शत्रु क्षयकार । र॥ॐ ह्री अहं जिष्णवे नम अध्यं । ४४२॥ करता हो विधि कर्मके, हरता पाप विशेष । पुन्यपाप सु विभाग कर, भूम नहीं राखो लेश॥ॐ ह्रीमह कर्त्रे नम प्रध्य ।४४३। अष्टम पूजा
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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