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________________ तुमसो कछु छाना नहीं, तीन लोकका भेद । दर्पण तल सम भास है, नमत कर्ममल छेव ।।लीप: nimn urf . वि. सकल ज्ञेयके ज्ञानतें, हो सबके सिरमोर । २८५१ पुरुषोत्तम तुम नाम है, तुम लग सवकी दौर॥जली AT TITAuri । स्वयं बुद्ध शिवमग चरत, स्वयंबुद्ध अविरुद्ध । शिवमगचारी नित जज, पावै प्रातम शुद्ध हो पर TAMATLi : २०८१ । सब देवनके देव हो, तीन लोक के पूज्य । ३ मिथ्या तिमिर निवारते,सूरज और न दूज ॥ीप नाकाम पर सुरनर मुनिके पूज्य हो, तुमसे श्रेष्ठ न कोय । इ तीन लोकके स्वामिहो,पूजत शिवसुख होय होप मानेम १८ ॥२१॥ ३ महा पूज्य महा मान्य हो, स्वयंवुद्ध अविकार । मन वच तनसे व्यावते,सुरनर भक्ति विचारली म टम महाज्ञान केवल कहो, सो दीखे तुम मांहि। पूजा महा नामसों पूजिये, संसारी दुख नाहि ॥ ही पद मार नम पाय ।।२१२॥ 13. 1 २
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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