SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 316
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छहों कायके वासको, विश्व कहै सब लोक । तिनके थंभनहार हो, राज काजके जोग॥ ॐ ह्रीं ग्रह विश्वभृते नम मध्यं ॥१५॥ सिद्ध० घट घटमें राजो सदा, ज्ञान द्वार सब ठोर। विश्व रूप जीवात्म हो, तीन लोक सिरमोर॥ ह्रींयह विश्वरूपात्मने नम' अर्घ्य ૨૮ર घट घटमें नितब्याप्त हो, ज्यों घर दीपक जोति । विश्वनाथ तुम नाम है, पूजत शिवसुख होत ॥ॐ ह्रीं महविश्वात्मने नम अध्यं ।१८७ इन्द्रादिक जे विश्वपति, तुम पद पूजै प्रान। यातें मुखिया हो सही, मै पूजू धरि ध्यान॥ॐ ह्रीं ग्रहं विश्वतोमुखाय नम प्रय ज्ञान द्वार सब जगतमें, व्यापि रहे भगवान । विश्वव्यापिमुनिकहतहै,ज्यूंनभमेशशि भान॥ॐ ह्रीमहं विश्वव्यापिनेनम अध्यं १८६ निरावरण निरलेप है, तेजरूप विख्यात । ज्ञान कला पुरण धरै,मै बंदू दिन रात॥ह्रीं पह स्वय नोतिषे नम.प्रय ।।१६०॥ अष्टम चितवनमें प्रावै नहीं, धारै सुगुरण अपार । मन वच काय नमूसदा,मिट सकल संसार ॥ ह्रीमह प्रचित्यात्मनेनम प्रय॑ १९१ र पूजा
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy