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________________ ६ werinaruwarenurum स्व-प्रातममें मग्न है, स्व प्रातम लवलीन । परमें भमरण कर नहीं, सन्त चरण शिर दीन ॥ॐ ह्रीमहं ब्रह्मनिष्ठायनमःअध्य।।१४३ तीन लोकके नाथ हो, इन्द्रादिक कर पूज। तुमसम और महानता, नहिं धारत है दूज ॥ह्रीं महं महाजेष्ठायनम अध्यं ।१४४। तीन लोक परसिद्ध हो, सिद्ध तुम्हारा नाम । सर्व सिद्धता.ईश हो, पूरहु सबके काम ॥ॐ ह्री प्रहं निरूढात्मने नमःअध्य ॥१४५।। । स्वै पातम थिरता धरै, नहीं चलाचल होय । निश्चल परम सुभावमें, भये प्रकृतिको खोय॥ह्री अर्ह दृढ़ात्मने नम.प्रध्य १४ा क्षयोपशम नानाविधै, क्षायक एक प्रकार । । सो तुममें नहीं और मे,बंदू-योगसंभार॥ॐ ह्री ग्रहं एकविधाय नम. अध्यं ।।१४७॥ कर्म पटलके नाशते, निर्मल ज्ञान उदार । तुम महान विद्याधरो, बन्दू योगसंभार॥ह्रो अह महाविद्याय नम अध्यं । १४॥ पूजा परम पूज्य परमेश पंद, पूरण ब्रह्म कहाय । पायो सहज महान पद, बर्दू तिनके पाय ॥ ह्रीमहं महापदेश्वरायनम अयं ।१६। अष्टम २७६
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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